एक व्यक्ति को किसी बड़े पद पर नौकरी मिल गयी। वह इस नौकरी से खुद को और बड़ा समझने लगा, लेकिन वह कभी भी खुद को बड़े पद के मुताबिक़ नहीं ढाल सका। एक दिन वह अपने ऑफिस में बैठा था, तभी बाहर से उसके दरवाजे को खटखटाने की आवाज आई। खुद को बहुत व्यस्त दिखाने के लिए उसनें टेबल पर रखे टेलीफोन को उठा लिया और जो व्यक्ति दरवाजे के बाहर खड़ा था उसे अन्दर आने के लिए कहा। वह अन्दर आकर इंतजार करने लगा, इस बीच कुर्सी पर बैठा अधिकारी फ़ोन पर चिल्ला-चिल्ला कर बात कर रहा था।
बीच-बीच में वह फोन पर कहता, कि मुझे वह काम जल्दी करके देना, टेलीफोन पर अपनी बातों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा था। ऐसे ही कुछ मिनट तक बात करने के बाद उस आदमी ने फ़ोन रखा और सामने वाले व्यक्ति से उसके ऑफिस आने की वजह पूछी। उस आदमी ने अधिकारी को जवाब देते हुए कहा, “सर, मुझे बताया गया था कि 3 दिनों से आपके इस ऑफिस का टेलीफ़ोन ख़राब है और मैं इस टेलीफ़ोन को ठीक करने के लिए आया हूँ।”
हमें कभी भी दिखावा नहीं करनी चाहिए। हम दिखावा करके क्या साबित करना चाहते हैं, इससे हम कभी भी कुछ हासिल नहीं कर सकते, हमें किसी के सामने झूठ बोलने की क्या जरूरत! दिखावा करके हम खुद की नजरों में कभी भी ऊपर नहीं उठ सकते। दिखावा करने से बचिए क्योंकि इससे लोग पीठ पीछे आपकी ही बुराई करेंगे। मुखौटा मत लगायें।
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मृत्यु अटल है | हिन्दी प्रेरक प्रसंग
एक चतुर व्यक्ति को काल से बहुत डर लगता था, और वह सोचता था कि मेरी किसी भी क्षण मृत्यु हो सकती है।वह क्या करे?
एक दिन उसे चतुराई सूझी और काल को ही अपना मित्र बना लिया। उसने अपने मित्र काल से कहा- मित्र, तुम किसी को भी नहीं छोड़ते हो, किसी दिन मुझे भी गाल में धर लोगो!
काल ने कहा- ये मृत्यु लोक है. जो आया है उसे मरना ही है; सृष्टि का यह शाश्वत नियम है, इसलिए मैं मजबूर हूं, पर तुम मित्र हो इसलिए मैं जितनी रियायत कर सकता हूं करूंगा ही मुझसे क्या आशा रखते हो, साफ-साफ कहो।
व्यक्ति ने कहा- मित्र मैं इतना ही चाहता हूं कि आप मुझे अपने लोक ले जाने के लिए आने से कुछ दिन पहले एक पत्र अवश्य लिख देना ताकि मैं अपने बाल-बच्चों को कारोबार की सभी बातें अच्छी तरह से समझा दूं और स्वयं भी भगवान भजन में लग जाऊं।
काल ने प्रेम से कहा- यह कौन सी बड़ी बात है, मैं एक नहीं आपको चार पत्र भेज दूंगा, चिंता मत करो चारों पत्रों के बीच समय भी अच्छा खासा दूंगा ताकि तुम सचेत होकर काम निपटा लो।
वह व्यक्ति बड़ा ही प्रसन्न हुआ। सोचने लगा कि आज से मेरे मन से काल का भय भी निकल गया, मैं जाने से पूर्व अपने सभी कार्य पूर्ण करके जाऊंगा तो देवता भी मेरा स्वागत करेंगे।
दिन बीतते गये आखिर मृत्यु की घड़ी आ पहुंची *काल* अपने दूतों सहित उसके समीप आकर बोला- “मित्र अब समय पूरा हुआ मेरे साथ चलिए मैं सत्यता और दृढ़तापूर्वक अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करते हुए एक क्षण भी तुम्हें और यहां नहीं छोड़ूंगा।”
उस व्यक्ति के माथे पर बल पड़ गए, भृकुटी तन गयी और कहने लगा- “धिक्कार है तुम्हारे जैसे मित्रों पर! मेरे साथ विश्वासघात करते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती”?
“तुमने मुझे वचन दिया था कि आने से पहले पत्र लिखूंगा। परंतु तुम तो बिना किसी सूचना के अचानक दूतों सहित मेरे ऊपर चढ़ आए. मित्रता तो दूर रही तुमने अपने वचनों को भी नहीं निभाया।
काल हंसा और बोला- “मित्र इतना झूठ तो न बोलो। मैंने आपको एक नहीं चार पत्र भेजे आपने एक भी उत्तर नहीं दिया।
उस व्यक्ति ने चौंककर पूछा– “कौन से पत्र? कोई प्रमाण है? मुझे पत्र प्राप्त होने की कोई डाक रसीद आपके पास है तो दिखाओ।”
काल ने कहा– मित्र, घबराओ नहीं, मेरे चारों पत्र इस समय आपके पास मौजूद हैं।
मेरा पहला पत्र आपके सिर पर चढ़कर बोला, आपके काले सुन्दर बाल, उन्हें सफ़ेद कर दिया और यह भी कहा कि सावधान हो जाओ, जो करना है कर डालो।
बनावटी रंग लगा कर आपने अपने बालों को फिर से काला कर लिया और पुनः जवान बनने के सपनों में खो गए आज तक मेरे श्वेत अक्षर आपके सिर पर लिखे हुए हैं।
कुछ दिन बाद मैंने दूसरा पत्र आपके नेत्रों के प्रति भेजा. नेत्रों की ज्योति मंद होने लगी। फिर भी आंखों पर मोटे शीशे चढ़ा कर आप जगत को देखने का प्रयत्न करने लगे, दो मिनट भी संसार की ओर से आंखे बंद करके, ज्योतिस्वरूप प्रभु का ध्यान मन में नहीं किया।
इतने पर भी सावधान नहीं हुए तो मुझे आपकी दीनदशा पर बहुत तरस आया और मित्रता के नाते मैंने तीसरा पत्र भी भेजा।
इस पत्र ने आपके दांतो को छुआ, हिलाया और तोड़ दिया। आपने इस पत्र का भी जवाब न दिया बल्कि नकली दांत लगवाये और जबरदस्ती संसार के भौतिक पदार्थों का स्वाद लेने लगे।
मुझे बहुत दुःख हुआ कि मैं सदा इसके भले की सोचता हूँ और यह हर बार एक नया, बनावटी रास्ता अपनाने को तैयार रहता है।
अपने अन्तिम पत्र के रूप में मैंने रोग- क्लेश तथा पीड़ाओं को भेजा परन्तु आपने अहंकार वश सब अनसुना कर दिया।
वह व्यक्ति काल के भेजे हुए इन पत्रों को सुन कर फूट-फूट कर रोने लगा और अपने विपरीत कर्मों पर पश्चाताप करने लगा। उसने स्वीकार किया कि मैंने गफलत में शुभ चेतावनी भरे इन पत्रों को नहीं पढ़ा।
मैं सदा यही सोचता रहा कि कल से भगवान का भजन करूंगा, अपनी कमाई अच्छे शुभ कार्यो में लगाऊंगा, पर वह कल ही नहीं आया।
काल ने कहा– “आज तक तुमने जो कुछ भी किया, राग-रंग, स्वार्थ और भोगों के लिए जान-बूझकर ईश्वरीय नियमों को तोड़कर तुमने कर्म किये”।
उस व्यक्ति को जब कोई मार्ग दिखाई नहीं दिया तो उसने काल को करोड़ों की सम्पत्ति का लोभ दिखाया। काल ने हंसकर कहा- “मित्र यह मेरे लिए धूल से अधिक कुछ भी नहीं है। धन-दौलत, शोहरत, सत्ता ये सब लोभ संसारी लोगों को वश में कर सकता है मुझे नहीं”।
काल ने उत्तर दिया- यदि तुम मुझे लुभाना ही चाहते थे तो सच्चाई और शुभ कर्मों का धन संग्रह करते यह ऐसा धन है जिसके आगे मैं विवश हो सकता था, अपने निर्णय पर पुनर्विचार को बाध्य हो सकता था पर तुम्हारे पास तो यह धन धेले भर का भी नहीं है।
तुम्हारे ये सारे रूपए-पैसे, जमीन-जायदाद, तिजोरी में जमा धन-संपत्ति सब यहीं छूट जाएगा, मेरे साथ तुम भी उसी प्रकार निर्वस्त्र जाओगे जैसे कोई भिखारी की आत्मा जाती है।
काल ने जब मनुष्य की एक भी बात नहीं सुनी तो वह हाय-हाय करके रोने लगा।
सभी सम्बन्धियों को पुकारा परन्तु काल ने उसके प्राण पकड़ लिए और चल पड़ा अपने गन्तव्य की ओर।
शिक्षा:-
एक ही सत्य है, जो अटल है वह है कि हम एक दिन मरेेंगे जरूर, हम जीवन में कितनी दौलत जमा करेंगे, कितनी शोहरत पाएंगे, कैसी संतान होगी यह सब अनिश्चित होता है, समय के गर्भ में छुपा होता है. परंतु हम मरेंगे एक दिन बस यही एक ही बात जन्म के साथ ही तय हो जाती है।
समय के साथ उम्र की निशानियों को देख कर तो कम से कम हमें प्रभु परमेश्वर की याद में रहने का अभ्यास करना चाहिए। इसमें तो हर एक को चाहे छोटा हो या बड़ा सब को प्रभु परमेश्वर की याद में रहकर ही कर्म करने चाहियें।
एक प्रोफेसर कक्षा में दाखिल हुए। उनके हाथ में पानी से भरा एक गिलास था। उन्होंने उसे बच्चों को दिखाते हुए पूछा, “यह क्या है?” छात्रों ने उत्तर दिया, “गिलास।” प्रोफेसर ने दोबारा पूछा, “इसका वजन कितना होगा ?” उत्तर मिला, “लगभग 100-150 ग्राम।” उन्होंने फिर पूछा, “अगर मैं इसे थोड़ी देर ऐसे ही पकड़े रहूं तो क्या होगा ?” छात्रों ने जवाब दिया, “कुछ नहीं।” “अगर मैं इसे एक घण्टे पकड़े रहूं तो ?” प्रोफेसर ने दोबारा प्रश्न किया। छात्रों ने उत्तर दिया, “आपके हाथ में दर्द होने लगेगा।”
उन्होंने फिर प्रश्न किया, “अगर मैं इसे सारा दिन पकड़े रहूं तो क्या होगा” ? तब छात्रों ने कहा, “आपकी नसों में तनाव हो जाएगा। नसें संवेदनशून्य हो सकती हैं। जिससे आपको लकवा हो सकता है।” प्रोफेसर ने कहा, “बिल्कुल ठीक। अब यह बताओ क्या इस दौरान इस गिलास के वजन में कोई फर्क आएगा ?” जवाब था कि नहीं। तब प्रोफेसर बोले, “यही नियम हमारे जीवन पर भी लागू होता है। यदि हम किसी समस्या को थोड़े समय के लिए अपने दिमाग में रखते हैं। तो कोई फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन अगर हम देर तक उसके बारे में सोचेंगे तो वह हमारे दैनिक जीवन पर असर डालने लगेगी। हमारा काम और पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होने लगेगा। इसलिए सुखी जीवन के लिए आवश्यक है कि समस्याओं का बोझ अपने सिर पर हमेशा नहीं लादे रखना चाहिए। समस्याएं सोचने से नहीं हल होतीं। सोने से पहले सारे समस्यायुक्त विचारों को बाहर रख देना चाहिए। इससे आपको अच्छी नींद आएगी और आप सुबह तरोताजा रहेंगें।
शिक्षा:-
समस्याओं को लेकर अधिक परेशान नहीं होना चाहिए। इससे हमारा नुकसान ही होता है ।
सच्चाई की जीत | हिन्दी प्रेरक प्रसंग
एक गाँव था जिसका नाम मायापुर था। और गाँव की सुंदरता का तो कुछ कहना ही नहीं था। क्योंकि उस गांव के किनारे ही एक विशाल जंगल था और उस जंगल में कई तरह के जंगली जानवर पशु-पक्षी रहा करते थे। एक दिन की बात है की एक लकड़हारा लकड़ियों को लेकर जंगल के रास्ते से अपने गांव की और जा रहा होता है। तभी उसे अचानक एक रास्ते पर शेर मिल जाता है और उस लकड़हारे से कहता है। देखो भाई आज मुझे कोई भी शिकार सुबह से नहीं मिला है और मुझे बहुत तेज भूख लगी है। में तुम्हे खाना चाहता हूँ और तुम्हे खा कर में अपनी भूख मिटाऊंगा।
तभी लकड़हारा घबराकर कहता है ठीक है अगर मुझे खाने से तुम्हारी भूख मिट सकती है और तुम्हारी जान बच सकती है तो मुझे ये मंज़ूर है। लेकिन उससे पहले में तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ शेर कहता है कहो तुम तो भैया अकेले हो और तुम्हारे कर किसी की ज़िम्मेदारी भी नहीं है परन्तु मेरे घर पर बच्चे बीवी भूख से व्याकुल हो रहे है। इस कारण मुझे यह लड़कियाँ बेचकर घर पर भोजन लेकर जाना होगा, परन्तु में तुमसे ये वादा करता हूँ की में अपने बीवी और बच्चों को भोजन देकर तुरंत तुम्हारे पास आ जाऊंगा।
तभी शेर बड़ी तेज हँसते है और कहता है कि तुमने क्या मुझे पागल समझ रखा है। तुम्हे मेरा शिकार बनना ही पड़ेगा। तभी लकड़हारा रोता है और कहता है कृप्या मुझे जाने दो में अपना वादा नहीं तोडूंगा। शेर को उसपर दया आ जाती है और कहता है की तुम्हे सूर्य डूबने से पहले ही आना होगा। लकड़हारा कहता है ठीक है। जब लकड़हारा अपनी बीवी और बच्चों को भोजन देकर शेर के पास वापस आया तो शेर प्रसन्न होता है और कहता है। तुम्हें मार कर में कोई पाप नहीं करना चाहता। तुम ईश्वर के सच्चे भक्त हो। तभी लकडहारा शेर का धन्यवाद करता है और ख़ुशी ख़ुशी अपने घर लोट जाता है।
शिक्षा:-
हमें हमेशा सच बोलना चाइये क्योंकि सच्चाई से ही व्यक्ति को सफलता प्राप्त होती हैं ।
सुंदरता | हिन्दी प्रेरक प्रसंग
एक कौआ सोचने लगा कि पंछियों में मैं सबसे ज्यादा कुरूप हूँ। न तो मेरी आवाज ही अच्छी है, न ही मेरे पंख सुंदर हैं। मैं काला-कलूटा हूँ। ऐसा सोचने से उसके अंदर हीनभावना भरने लगी और वह दुखी रहने लगा। एक दिन एक बगुले ने उसे उदास देखा तो उसकी उदासी का कारण पूछा। कौवे ने कहा – तुम कितने सुंदर हो, गोरे-चिट्टे हो, मैं तो बिल्कुल स्याह वर्ण का हूँ। मेरा तो जीना ही बेकार है। बगुला बोला – दोस्त मैं कहाँ सुंदर हूँ। मैं जब तोते को देखता हूँ, तो यही सोचता हूँ कि मेरे पास हरे पंख और लाल चोंच क्यों नहीं है। अब कौए में सुन्दरता को जानने की उत्सुकता बढ़ी।
वह तोते के पास गया। बोला – तुम इतने सुन्दर हो, तुम तो बहुत खुश होते होगे ? तोता बोला- खुश तो था लेकिन जब मैंने मोर को देखा, तब से बहुत दुखी हूँ, क्योंकि वह बहुत सुन्दर होता है। कौआ मोर को ढूंढने लगा, लेकिन जंगल में कहीं मोर नहीं मिला। जंगल के पक्षियों ने बताया कि सारे मोर चिड़ियाघर वाले पकड़ कर ले गये हैं। कौआ चिड़ियाघर गया, वहाँ एक पिंजरे में बंद मोर से जब उसकी सुंदरता की बात की, तो मोर रोने लगा। और बोला – शुक्र मनाओ कि तुम सुंदर नहीं हो, तभी आजादी से घूम रहे हो वरना मेरी तरह किसी पिंजरे में बंद होते।
शिक्षा:-
दूसरों से तूलना करके दुःखी होना बुद्धिमानी नहीं है। असली सुन्दरता हमारे अच्छे कार्यों से आती है।
एक लड़के ने एक बार एक बहुत ही धनवान व्यक्ति को देखकर धनवान बनने का निश्चय किया। वह धन कमाने के लिए कई दिनों तक मेहनत कर धन कमाने के पीछे पड़ा रहा और बहुत सारा पैसा कमा लिया। इसी बीच उसकी मुलाकात एक विद्वान से हो गई। विद्वान के ऐश्वर्य को देखकर वह आश्चर्यचकित हो गया और अब उसने विद्वान बंनने का निश्चय कर लिया और अगले ही दिन से धन कमाने को छोड़कर पढने-लिखने में लग गया। वह अभी अक्षर ज्ञान ही सिख पाया था, की इसी बीच उसकी मुलाकात एक संगीतज्ञ से हो गई। उसको संगीत में अधिक आकर्षण दिखाई दिया, इसीलिए उसी दिन से उसने पढाई बंद कर दी और संगीत सिखने में लग गया।
इसी तरह काफी उम्र बित गई, न वह धनी हो सका ना विद्वान और ना ही एक अच्छा संगीतज्ञ बन पाया। तब उसे बड़ा दुख हुआ। एक दिन उसकी मुलाकात एक बहुत बड़े महात्मा से हुई। उसने महात्मन को अपने दुःख का कारण बताया। महात्मा ने उसकी परेशानी सुनी और मुस्कुराकर बोले, “बेटा, दुनिया बड़ी ही चिकनी है, जहाँ भी जाओगे कोई ना कोई आकर्षण ज़रूर दिखाई देगा। एक निश्चय कर लो और फिर जीते जी उसी पर अमल करते रहो तो तुम्हें सफलता की प्राप्ति अवश्य हो जाएगी, नहीं तो दुनियां के झमेलों में यूँ ही चक्कर खाते रहोगे। बार-बार रूचि बदलते रहने से कोई भी उन्नत्ति नहीं कर पाओगे।”
युवक महात्मा की बात को समझ गया और एक लक्ष्य निश्चित कर उसी का अभ्यास करने लगा।
शिक्षा:-
उपर्युक्त प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि, हम जिस भी कार्य को करें, पूरे तन और मन से से एकाग्रचित होकर करें, बार-बार इधर-उधर भटकने से बेहतर यही की एक जगह टिककर मेहनत की जाएं, तभी सफलता प्राप्त की जा सकती हैं।
बुद्धिमान साधु | बेस्ट हिंदी प्रेरक प्रसंग
एक साधु घने जंगल से होकर जा रहा था। उसे अचानक सामने से बाघ आता हुआ दिखाई दिया। साधु ने सोचा कि अब तो उसके प्राण नहीं बचेंगे। यह बाघ निश्चय ही उसे खा जाएगा। साधु भय के मारे काँपने लगा। फिर उसने सोचा कि मरना तो है ही, क्यों न बचने का कुछ उपाय करके देखें।
साधु ने बाघ के पास आते ही ताली बजा-बजाकर नाचना शुरू कर दिया। बाघ को यह देख कर बहुत आश्चर्य हुआ। वह बोला- “ओ रे मूर्ख! क्यों नाच रहे हो? क्या तुम्हें नहीं पता कि मैं तुम्हें कुछ ही देर में खा डालूंगा।”
साधु ने कहा- “हे बाघ, मैं प्रतिदिन बाघ का भोजन करता हूं। मेरी झोली में एक बाघ तो पहले से ही है किंतु वह मेरे लिए अपर्याप्त है। मुझे एक और बाघ चाहिए था। मैं उसी की खोज में जंगल में आया था। तुम अपने आप मेरे पास आ गए हो, इसीलिए मुझे खुशी हो रही है।”
साधु की बात सुन कर बाघ मन-ही-मन कुछ डरा। फिर भी उसे विश्वास नहीं हुआ। उसने साधु से कहा- “तुम अपनी झोली वाला बाघ मुझे दिखाओ। यदि नहीं दिखा सके तो मैं तुम्हें मार डालूँगा।”
साधु ने उत्तर दिया- “ठीक है, अभी दिखाता हूँ। तुम जरा ठहरो, देखो भाग मत जाना।”
इतना कहकर साधु ने अपनी झोली उठाई। उसकी झोली में एक शीशा था। उसने शीशे को झोली के मुख के पास लाकर बाघ से कहा- “देखो, यह रहा पहला वाला बाघ।”
बाघ साधु के पास आया। उसने जैसे ही झोली के मुंह पर देखा, उसे शीशे में अपनी ही परछाई दिखाई दी। इसके बाद वह गुर्राया तो शीशे वाला बाघ भी गुर्राता दिखाई दिया। अब बाघ को विश्वास हो गया कि साधु की झोली में सचमुच एक बाघ बंद है। उसने सोचा कि यहाँ से भाग जाने में ही कुशल है। वह पूँछ दबाकर साधु के पास से भाग गया।
वह अपने साथियों के पास पहुँचा और सब मिल कर अपने राजा के पास गए। राजा ने जब सारी घटना सुनी तो उसे बहुत क्रोध आया। वह बोला- “तुम सब कायर हो। कहीं आदमी भी बाघ को खा सकता है। चलो, मैं उस साधु को मजा चखाता हूं।”
बाघ का सरदार दूसरे बाघों के साथ साधु को खोजने चल पड़ा। इसी बीच साधु के पास एक लकड़हारा आ गया था। साधु उसे बाघ वाली घटना सुना रहा था। तभी बाघों का सरदार वहाँ पहुँचा। जब लकड़हारे ने बहुत से बाघों को अपनी ओर आते देखा तो डर के मारे उसकी घिग्घी बंध गई। वह कुल्हाड़ी फेंक कर पेड़ पर चढ़ गया। साधु को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था। वह पेड़ के पीछे छिप कर बैठ गया।
जो बाघ साधु के पास से जान बचा कर भागा था, वह अपने सरदार से बोला, देखो सरदार सामने देखो, पहले तो एक ही साधु था, अब दूसरा भी आ गया है। एक नीचे छिप गया है और दूसरा पेड़ के ऊपर, चलो भाग चलें।”
बाघों का सरदार बोला, “मैं इनसे नहीं डरता। तुम सब लोग इस पेड़ को चारों तरफ से घेर लो, ताकि ये दोनों भाग न जाएं। मैं पेड़ के पास जाता हूं।”
इतना कह कर बाघों का सरदार पेड़ की तरफ बढ़ने लगा। साधु और लकड़हारा अपनी-अपनी जान की खैर मनाने लगे। अचानक लकड़हारे को एक चींटी ने काट खाया। जैसे ही वह दर्द से तिलमिलाया कि उसके हाथ से टहनी छूट गई। वह घने पत्तों और टहनियों से रगड़ खाता हुआ धड़ाम से नीचे आ गिरा। जब साधु ने उसे गिरते हुए देखा तो वह बहुत जोर से चिल्लाया, “बाघ के सरदार को पकड़ लो। जल्दी करो, फिर यह भाग जाएगा।”
धड़ाम की आवाज और साधु के चिल्लाने से बाघों का सरदार डर गया। उसने सोचा कि यह साधु सचमुच ही बाघों को खाने वाला है। वह उलटे पैरों भागने लगा। उसके साथी भी उसे भागता हुआ देखते ही सिर पर पैर रखकर भाग गए।
शिक्षा:-
बुद्धि बल पर भारी पड़ती है ।
सजा का मापदंड – प्रेरक प्रसंग
बहुत समय पहले हरिशंकर नाम का एक राजा था। उसके तीन पुत्र थे और अपने उन तीनों पुत्रों में से वह किसी एक पुत्र को राजगद्दी सौंपना चाहता था। पर किसे? राजा ने एक तरकीब निकाली और उसने तीनो पुत्रों को बुलाकर कहा– अगर तुम्हारे सामने कोई अपराधी खड़ा हो तो तुम उसे क्या सजा दोगे?
पहले राजकुमार ने कहा कि अपराधी को मौत की सजा दी जाए तो दूसरे ने कहा कि अपराधी को काल कोठरी में बंद कर दिया जाये। अब तीसरे राजकुमार की बारी थी। उसने कहा कि पिताजी सबसे पहले यह देख लिया जाये कि उसने गलती की भी है या नहीं।
इसके बाद उस राजकुमार ने एक कहानी सुनाई– किसी राज्य में राजा हुआ करता था, उसके पास एक सुन्दर सा तोता था। वह तोता बड़ा बुद्धिमान था, उसकी मीठी वाणी और बुद्धिमत्ता की वजह से राजा उससे बहुत खुश रहता था। एक दिन की बात है कि तोते ने राजा से कहा कि मैं अपने माता-पिता के पास जाना चाहता हूँ। वह जाने के लिए राजा से विनती करने लगा। तब राजा ने उससे कहा कि ठीक है पर तुम्हें पांच दिनों में वापस आना होगा। वह तोता जंगल की ओर उड़ चला, अपने माता-पिता से जंगल में मिला और खूब खुश हुआ। ठीक पांच दिनों बाद जब वह वापस राजा के पास जा रहा था तब उसने एक सुन्दर सा उपहार राजा के लिए ले जाने का सोचा।
वह राजा के लिए अमृत फल ले जाना चाहता था। जब वह अमृत फल के लिए पर्वत पर पहुंचा तब तक रात हो चुकी थी। उसने फल को तोड़ा और रात वहीं गुजारने का सोचा। वह सो रहा था कि तभी एक सांप आया और उस फल को खाना शुरू कर दिया। सांप के जहर से वह फल भी विषाक्त हो चुका था। जब सुबह हुई तब तोता उड़कर राजा के पास पहुँच गया और कहा– राजन मैं आपके लिए अमृत फल लेकर आया हूँ। इस फल को खाने के बाद आप हमेशा के लिए जवान और अमर हो जायेंगे। तभी मंत्री ने कहा कि महाराज पहले देख लीजिए कि फल सही भी है कि नहीं ? राजा ने बात मान ली और फल में से एक टुकड़ा कुत्ते को खिलाया। कुत्ता तड़प-तड़प कर मर गया। राजा बहुत क्रोधित हुआ और अपनी तलवार से तोते का सिर धड़ से अलग कर दिया। राजा ने वह फल बाहर फेंक दिया। कुछ समय बाद उसी जगह पर एक पेड़ उगा। राजा ने सख्त हिदायत दी कि कोई भी इस पेड़ का फल ना खाएं क्यूंकि राजा को लगता था कि यह अमृत फल विषाक्त होते हैं और तोते ने यही फल खिलाकर उसे मारने की कोशिश की थी।
एक दिन एक बूढ़ा आदमी उस पेड़ के नीचे विश्राम कर रहा था। उसने एक फल खाया और वह जवान हो गया क्यूंकि उस वृक्ष पर उगे हुए फल विषाक्त नहीं थे। जब इस बात का पता राजा को चला तो उसे बहुत ही पछतावा हुआ उसे अपनी करनी पर लज़्ज़ा हुई। तीसरे राजकुमार के मुख से यह कहानी सुनकर राजा बहुत ही खुश हुआ और तीसरे राजकुमार को सही उत्तराधिकारी समझते हुए उसे ही अपने राज्य का राजा चुना।
शिक्षा:-
किसी भी अपराधी को सजा देने से पहले यह देख लेना चाहिए कि उसकी गलती है भी या नहीं, कहीं भूलवश आप किसी निर्दोष को तो सजा देने नहीं जा रहे हैं। निरपराध को कतई सजा नहीं मिलनी चाहिए।
अनसुनी बुराई – आज का प्रेरक प्रसङ्ग
एक बार स्वामी विवेकानंद रेल से कही जा रहे थे | वह जिस डिब्बे में सफर कर रहे थे, उसी डिब्बे में कुछ अंग्रेज यात्री भी थे | उन अंग्रेजो को साधुओं से बहुत चिढ़ थी | वे साधुओं की भर – पेट निंदा कर रहे थे | साथ वाले साधु यात्री को भी गाली दे रहे थे | उनकी सोच थी कि चूँकि साधू अंग्रेजी नहीं जानते, इसलिए उन अंग्रेजों की बातों को नहीं समझ रहे होंगे | इसलिए उन अंग्रेजो ने आपसी बातचीत में साधुओं को कई बार भला – बुरा कहा | हालांकि उन दिनों की हकीकत भी थी कि अंग्रेजी जानने वाले साधु होते भी नहीं थे |
रास्ते में एक बड़ा स्टेशन आया | उस स्टेशन पर विवेकानंद के स्वागत में हजारों लोग उपस्थित थे, जिनमे विद्वान् एवं अधिकारी भी थे | यहाँ उपस्थित लोगों को सम्बोधित करने के बाद अंग्रेजी में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर स्वामीजी अंग्रेजी में ही दे रहे थे | इतनी अच्छी अंग्रेजी बोलते देखकर उन अंग्रेज यात्रियों को सांप सूंघ गया , जो रेल में उनकी बुराई कर रहे थे | अवसर मिलने पर वे विवेकानंद के पास आये और उनसे नम्रतापूर्वक पूछा – आपने हम लोगों की बात सुनी | आपने बुरा माना होगा ?
स्वामीजी ने सहज शालीनता से कहा – ” मेरा मस्तिष्क अपने ही कार्यों में इतना अधिक व्यस्त था कि आप लोगों की बात सुनी भी पर उन पर ध्यान देने और उनका बुरा मानने का अवसर ही नहीं मिला |” स्वामीजी की यह जवाब सुनकर अंग्रेजो का सिर शर्म से झुक गया और उन्होंने चरणों में झुककर उनकी शिष्यता स्वीकार कर ली |
कहानी से सीख Moral of Story on
इस शिक्षाप्रद कहानी से सीख मिलती है कि हमें सदैव अपने लक्ष्य पर फोकस करना चाहिए |
क्रोध में हार की झलक – आज का प्रेरक प्रसङ्ग
बहुत समय पहले की बात है। आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार शास्त्रार्थ चला। शास्त्रार्थ की निर्णायक थीं मंडन मिश्र की धर्म पत्नी देवी भारती। हार-जीत का निर्णय होना बाक़ी था, इसी बीच देवी भारती को किसी आवश्यक कार्य से कुछ समय के लिये बाहर जाना पड़ गया। लेकिन जाने से पहले देवी भारती नें दोनों ही विद्वानों के गले में एक-एक फूल माला डालते हुए कहा, यें दोनो मालाएं मेरी अनुपस्थिति में आपके हार और जीत का फैसला करेंगी। यह कहकर देवी भारती वहाँ से चली गई। शास्त्रार्थ की प्रकिया आगे चलती रही। कुछ देर बाद देवी भारती अपना कार्य पूरा करके लौट आई। उन्होंने अपनी निर्णायक नजरों से शंकराचार्य और मंडन मिश्र को बारी- बारी से देखा और अपना निर्णय सुना दिया। उनके फैसले के अनुसार आदि शंकराचार्य विजयी घोषित किये गये और उनके पति मंडन मिश्र की पराजय हुई थी। सभी लोग ये देखकर हैरान हो गये कि बिना किसी आधार के इस विदुषी ने अपने पति को ही पराजित करार दे दिया। एक विद्वान नें देवी भारती से नम्रतापूर्वक जिज्ञासा की- हे ! देवी आप तो शास्त्रार्थ के मध्य ही चली गई थीं फिर वापस लौटते ही आपनें ऐसा फैसला कैसे दे दिया ? देवी भारती ने मुस्कुराकर जवाब दिया- जब भी कोई विद्वान शास्त्रार्थ में पराजित होने लगता है, और उसे जब हार की झलक दिखने लगती है तो इस वजह से वह क्रोधित हो उठता है और मेरे पति के गले की माला उनके क्रोध की ताप से सूख चुकी है जबकि शंकराचार्य जी की माला के फूल अभी भी पहले की भांति ताजे हैं। इससे ज्ञात होता है कि शंकराचार्य की विजय हुई है। विदुषी देवी भारती का फैसला सुनकर सभी दंग रह गये, सबने उनकी काफी प्रशंसा की। शिक्षा:- क्रोध मनुष्य की वह अवस्था है जो जीत के नजदीक पहुँचकर हार का नया रास्ता खोल देता है। क्रोध न सिर्फ हार का दरवाजा खोलता है, बल्कि रिश्तों में दरार का कारण भी बनता है। इसलिये कभी भी क्रोध को खुद पर हावी ना होने दें। कोध्र से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है, जब तर्क नष्ट होता है, तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
एक बार एक पंडित जी ने एक दुकानदार के पास पांच सौ रुपये रख दिए। उन्होंने सोचा कि जब मेरी बेटी की शादी होगी तो मैं ये पैसा ले लूंगा। कुछ सालों के बाद जब बेटी सयानी हो गई, तो पंडित जी उस दुकानदार के पास गए। लेकिन दुकानदार ने नकार दिया और बोला- आपने कब मुझे पैसा दिया था? बताइए! क्या मैंने कुछ लिखकर दिया है? पंडित जी उस दुकानदार की इस हरकत से बहुत ही परेशान हो गए और बड़ी चिंता में डूब गए। फिर कुछ दिनों के बाद पंडित जी को याद आया, कि क्यों न राजा से इस बारे में शिकायत कर दूं ताकि वे कुछ फैसला कर देंगे और मेरा पैसा मेरी बेटी के विवाह के लिए मिल जाएगा। फिर पंडित जी राजा के पास पहुंचे और अपनी फरियाद सुनाई। राजा ने कहा- कल हमारी सवारी निकलेगी और तुम उस दुकानदार की दुकान के पास में ही खड़े रहना। दूसरे दिन राजा की सवारी निकली। सभी लोगों ने फूलमालाएं पहनाईं और किसी ने आरती उतारी। पंडित जी उसी दुकान के पास खड़े थे। जैसे ही राजा ने पंडित जी को देखा, तो उसने उन्हें प्रणाम किया और कहा- गुरु जी! आप यहां कैसे? आप तो हमारे गुरु हैं। आइए! इस बग्घी में बैठ जाइए। वो दुकानदार यह सब देख रहा था। उसने भी आरती उतारी और राजा की सवारी आगे बढ़ गई। थोड़ी दूर चलने के बाद राजा ने पंडित जी को बग्घी से नीचे उतार दिया और कहा- पंडित जी! हमने आपका काम कर दिया है। अब आगे आपका भाग्य। उधर वो दुकानदार यह सब देखकर हैरान था, कि पंडित जी की तो राजा से बहुत ही अच्छी सांठ-गांठ है। कहीं वे मेरा कबाड़ा ही न करा दें। दुकानदार ने तत्काल अपने मुनीम को पंडित जी को ढूंढ़कर लाने को कहा। पंडित जी एक पेड़ के नीचे बैठकर कुछ विचार-विमर्श कर रहे थे। मुनीम जी बड़े ही आदर के साथ उन्हें अपने साथ ले आए। दुकानदार ने आते ही पंडित जी को प्रणाम किया और बोला- पंडित जी! मैंने काफी मेहनत की और पुराने खातों को देखा, तो पाया कि खाते में आपका पांच सौ रुपया जमा है। और पिछले दस सालों में ब्याज के बारह हजार रुपए भी हो गए हैं। पंडित जी! आपकी बेटी भी तो मेरी बेटी जैसी ही है। अत: एक हजार रुपये आप मेरी तरफ से ले जाइए, और उसे बेटी की शादी में लगा दीजिए। इस प्रकार उस दुकानदार ने पंडित जी को तेरह हजार पांच सौ रुपए देकर बड़े ही प्रेम के साथ विदा किया। तात्पर्य:- जब मात्र एक राजा के साथ सम्बन्ध होने भर से हमारी विपदा दूर जो जाती है, तो हम अगर हम खुद से (जो कि परमात्मा का अंश है) और इस दुनिया के राजा यानि कि परमात्मा से अपना सम्बन्ध जोड़ लें तो हमें कोई भी समस्या, कठिनाई या फिर हमारे साथ किसी भी तरह के अन्याय का तो कोई प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होगा। तो हमेशा से उस परमात्मा का धन्यवाद करते रहे। ओर उनके समीप रहे।
गृहस्थ या साधु ? – आज की प्रेरक कथा
एक व्यक्ति कबीरजी के पास गया और बोला- मेरी शिक्षा तो समाप्त हो गई। अब मेरे मन में दो बातें आती हैं, एक यह कि विवाह करके गृहस्थ जीवन यापन करूँ या संन्यास धारण करूँ? इन दोनों में से मेरे लिए क्या अच्छा रहेगा यह बताइए?
कबीरजी ने कहा दोनों ही बातें अच्छी है जो भी करना हो,वह सोच-समझकर करो,और वह उच्चकोटि का हो। उस व्यक्ति ने पूछा उच्चकोटि का करना चाहिए। उस व्यक्ति ने पूछा उच्चकोटि का कैसे है? कबीरजी ने कहा- किसी दिन प्रत्यक्ष देखकर बतायेंगे वह व्यक्ति रोज उत्तर प्रतीक्षा में कबीर के पास आने लगा।
एक दिन कबीरजी दिन के बारह बजे सूत बुन रहे थे। खुली जगह में प्रकाश काफी था कबीर साहेब ने अपनी धर्म पत्नी को दीपक लाने का आदेश दिया। वह तुरन्त बिना किसी सवाल के जलाकर लाई और उनके पास रख गई। दीपक जलता रहा वे सूत बुनते रहे।
सायंकाल को उस व्यक्ति को लेकर कबीरजी एक पहाड़ी पर गए। जहाँ काफी ऊँचाई पर एक बहुत वृद्ध साधु कुटी बनाकर रहते थे। कबीरजी ने साधु को आवाज दी। महाराज आपसे कुछ जरूरी काम है कृपया नीचे आइए। बूढ़ा बीमार साधु मुश्किल से इतनी ऊँचाई से उतर कर नीचे आया। कबीरजीने पूछा आपकी आयु कितनी है यह जानने के लिए नीचे बुलाया है। साधु ने कहा अस्सी बरस। यह कह कर वह फिर से ऊपर चढ़ा। बड़ी कठिनाई से कुटी में पहुँचा। कबीरजी ने फिर आवाज दी और नीचे बुलाया। साधु फिर आया। उससे पूछा- आप यहाँ पर कितने दिन से निवास करते है? उनने बताया चालीस वर्ष से। फिर जब वह कुटी में पहुँचे तो तीसरी बार फिर उन्हें इसी प्रकार बुलाया और पूछा- आपके सब दाँत उखड़ गए या नहीं? उसने उत्तर दिया। आधे उखड़ गए। तीसरी बार उत्तर देकर वह ऊपर जाने लगा तब इतने चढ़ने उतरने से साधु की साँस फूलने लगी, पाँव काँपने लगे। वह बहुत अधिक थक गया था फिर भी उसे क्रोध तनिक भी न था।
अब कबीरजी अपने साथी समेत घर लौटे तो साथी ने अपने प्रश्न का उत्तर पूछा। उनने कहा तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में यह दोनों घटनायें उपस्थित है। यदि गृहस्थ बनाना हो तो ऐसे जीवनसाथी का चयन करना चाहिये जो हम पर पूरा भरोसा रखें और हमारा कहना सहजता से मानें, कि उसे दिन में भी दीपक जलाने की मेरी आज्ञा अनुचित नहीं मालूम पड़ी ,उसनें व्यर्थ कुतर्क नहीं किया और साधु बनना हो तो ऐसा बनना चाहिए कि कोई कितना ही परेशान करे क्रोध व शोक न हो,हम सहज रहें।
अपनी पड़ताल स्वयं करे – आज की प्रेरक कहानी
“दूसरों की आलोचना करने वालों को इस घटना को भी स्मरण रखना चाहिए।” एक व्यक्ति के बारे में मशहूर हो गया कि उसका चेहरा बहुत मनहूस है। लोगों ने उसके मनहूस होने की शिकायत राजा से की। राजा ने लोगों की इस धारणा पर विश्वास नहीं किया ,लेकिन इस बात की जाँच खुद करने का फैसला किया। राजा ने उस व्यक्ति को बुला कर अपने महल में रखा और एक सुबह स्वयं उसका मुख देखने पहुँचा। संयोग से व्यस्तता के कारण उस दिन राजा भोजन नहीं कर सका।वह इस नतीजे पर पहुंचा कि उस व्यक्ति का चेहरा सचमुच मनहूस है। उसने जल्लाद को बुलाकर उस व्यक्ति को मृत्युदंड देने का हुक्म सुना दिया।जब मंत्री ने राजा का यह हुक्म सुना तो उसने पूछा ,”महाराज!इस निर्दोष को क्यों मृत्युदंड दे रहे हैं ?राजा ने कहा ,”हे मंत्री! यह व्यक्ति वास्तव में मनहूस है ।आज सर्वप्रथम मैंने इसका मुख देखा तो मुझे दिन भर भोजन भी नसीब नहीं हुआ ।,इस पर मंत्री ने कहा ,”महाराज क्षमा करें ,प्रातः इस व्यक्ति ने भी सर्वप्रथम आपका मुख देखा। आपको तो भोजन नहीं मिला, लेकिन आपके मुखदर्शन से तो इसे मृत्युदंड मिल रहा है। अब आप स्वयं निर्णय करें कि कौन अधिक मनहूस है ।”राजा भौंचक्का रह गया।उसने इस दृष्टि से तो सोचा ही नहीं था। राजा को किंकर्तव्यविमूढ़ देख कर मंत्री ने कहा, “राजन्! किसी भी व्यक्ति का चेहरा मनहूस नहीं होता। वह तो भगवान की देन है। मनहूसियत हमारे देखने या सोचने के ढंग में होती है। आप कृपा कर इस व्यक्ति को मुक्त कर दें। राजा ने उसे मुक्त कर दिया। उसे सही सलाह मिली।
एक राजा था जिसकी केवल एक टाँग और एक आँख थी। उस राज्य में सभी लोग खुशहाल थे क्यूंकि राजा बहुत बुद्धिमान और प्रतापी था। एक बार राजा के विचार आया कि क्यों खुद की एक तस्वीर बनवायी जाये। फिर क्या था, देश विदेशों से चित्रकारों को बुलवाया गया और एक से एक बड़े चित्रकार राजा के दरबार में आये। राजा ने उन सभी से हाथ जोड़ कर आग्रह किया कि वो उसकी एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनायें जो राजमहल में लगायी जाएगी। सारे चित्रकार सोचने लगे कि राजा तो पहले से ही विकलांग है, फिर उसकी तस्वीर को बहुत सुन्दर कैसे बनाया जा सकता है? ये तो संभव ही नहीं है और अगर तस्वीर सुन्दर नहीं बनी तो राजा गुस्सा होकर दंड देगा। यही सोचकर सारे चित्रकारों ने राजा की तस्वीर बनाने से मना कर दिया।तभी पीछे से एक चित्रकार ने अपना हाथ खड़ा किया और बोला कि मैं आपकी बहुत सुन्दर तस्वीर बनाऊँगा जो आपको जरूर पसंद आएगी। फिर चित्रकार जल्दी से राजा की आज्ञा लेकर तस्वीर बनाने में जुट गया। काफी देर बाद उसने एक तस्वीर तैयार की जिसे देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और सारे चित्रकारों ने अपने दातों तले उंगली दबा ली। उस चित्रकार ने एक ऐसी तस्वीर बनायीं जिसमें राजा एक टाँग को मोड़कर जमीन पे बैठा है और एक आँख बंद करके अपने शिकार पे निशाना लगा रहा है। राजा ये देखकर बहुत प्रसन्न हुआ कि उस चित्रकार ने राजा की कमजोरियों को छिपाकर कितनी चतुराई से एक सुन्दर तस्वीर बनाई है। राजा ने उसे खूब इनाम एवं धन दौलत दी। तो क्यों ना हम भी दूसरों की कमियों को छुपाएँ, उन्हें नजरअंदाज करें और अच्छाइयों पर ध्यान दें। आजकल देखा जाता है कि लोग एक दूसरे की कमियाँ बहुत जल्दी ढूंढ लेते हैं चाहें हममें खुद में कितनी भी बुराइयाँ हों लेकिन हम हमेशा दूसरों की बुराइयों पर ही ध्यान देते हैं कि अमुक आदमी ऐसा है, वो वैसा है। हमें नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोचना चाहिए और हमारी सकारात्मक सोच हमारी हर समस्यों को हल करती है।
हमारी जिन्दगी की नाव | हिन्दी प्रेरक प्रसंग
एक आदमी ने एक पेंटर को बुलाया अपने घर, और अपनी नाव दिखाकर कहा कि इसको पेंट कर दो ! उस पेंटर ने पेंट लेकर उस नाव को लाल रंग से पेंट कर दिया जैसा कि नाव का मालिक चाहता था। फिर पेंटर ने अपने पैसे लिए और चला गया । अगले दिन, पेंटर के घर पर वह नाव का मालिक पहुँच गया, और उसने एक बहुत बड़ी धनराशी का चेक दिया उस पेंटर को । पेंटर भौंचक्का हो गया, और पूछा – ये किस बात के इतने पैसे हैं ? मेरे पैसे तो आपने कल ही दे दिया था । मालिक ने कहा – ये पेंट का पैसा नहीं है, बल्कि ये उस नाव में जो “छेद” था, उसको रिपेयर करने का पैसा है , पेंटर ने कहा – अरे साहब, वो तो एक छोटा सा छेद था, सो मैंने बंद कर दिया था। उस छोटे से छेद के लिए इतना पैसा मुझे, ठीक नहीं लग रहा है । मालिक ने कहा – दोस्त, तुम्हें पूरी बात पता नहीं !अच्छा में विस्तार से समझाता हूँ। जब मैंने तुम्हें पेंट के लिए कहा तो जल्दबाजी में तुम्हें ये बताना भूल गया कि नाव में एक छेद है उसको रिपेयर कर देना और जब पेंट सूख गया, तो मेरे दोनों बच्चे उस नाव को समुद्र में लेकर नौकायन के लिए निकल गए । मैं उस वक़्त घर पर नहीं था, लेकिन जब लौट कर आया और अपनी पत्नी से ये सुना कि बच्चे नाव को लेकर नौकायन पर निकल गए हैं तो मैं बदहवास हो गया। क्योंकि मुझे याद आया कि नाव में तो छेद है ! मैं गिरता पड़ता भागा उस तरफ, जिधर मेरे प्यारे बच्चे गए थे। लेकिन थोड़ी दूर पर मुझे मेरे बच्चे दिख गए, जो सकुशल वापस आ रहे थे अब मेरी ख़ुशी और प्रसन्नता का आलम तुम समझ सकते हो ! फिर मैंने छेद चेक किया, तो पता चला कि, मुझे बिना बताये तुम उसको रिपेयर कर चुके हो…तो मेरे दोस्त उस महान कार्य के लिए तो ये पैसे भी बहुत थोड़े हैं ! मेरी औकात नहीं कि उस कार्य के बदले तुम्हे ठीक ठाक पैसे दे पाऊं , जीवन मे “भलाई का कार्य” जब मौका लगे हमेशा कर देना चाहिए, भले ही वो बहुत छोटा सा कार्य ही क्यों न हो ! क्योंकि कभी कभी वो छोटा सा कार्य भी किसी के लिए बहुत अमूल्य हो सकता है। सभी मित्रों को जिन्होने ‘हमारी जिन्दगी की नाव’ कभी भी रिपेयर की है उन्हें हार्दिक धन्यवाद और सदैव प्रयत्नशील रहें कि हम भी किसी की नाव रिपेयरिंग करने के लिए हमेशा तत्पर रहें।
Prerak Prasang 2022| हम सब बचपन से दादी नानी के प्रेरक प्रसंग कहानियां सुनकर ही बड़े हुए हैं प्रेरक प्रसंग और छोटी-छोटी कहानियां का हमारे जीवन में अलग ही स्थान है यह हमारे जीवन को एक नई दिशा देने का कार्य करते हैं साथ ही जिंदगी के हर मोड़ पर मोटिवेट या प्रोत्साहित करने का कार्य करती है प्रेरक प्रसंग कहानियां हमारे अंदर जीवन मूल्यों का निर्माण करती हैं इसीलिए हमने एक छोटी सी कोशिश करके पेश की है बेस्ट प्रेरक प्रसंग और प्रेरणादायक कहानियाँ | Best Motivational stories in Hindi | Prerak Prasang का हमारे दैनिक जीवन और विद्यालयी जीवन में बहुत महत्व है क्योंकि ये हमें जीवन जीने की सही दिशा बोध करवाते है , प्रेरक प्रसंग हमारे जीवन में जोश भर देते है , प्रेरक प्रसंग और प्रेरक कहानियाँ बच्चो को बहुत अच्छी लगती हैं , उन्हें प्रतिदिन प्रेरक प्रसंग कहानियां सुनानी और सुननी चाहिए।
bhut achi story bna te he