इस लेख में हमने बेहतरीन प्रेरक प्रसंग (ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक हिंदी कहानी) के संग्रह को प्रस्तुत किया है, जो कहने को तो लघु कथा के रूप में है परन्तु आपके विचार में एक बड़ा बदलाव लाने की काबिलियत रखता है।मुझे पूरी उम्मीद है कि इन प्रेरक प्रसंगो (Prerak prasang in hindi) को पढ़ने के बाद आपमें सकारात्मक ज्ञान का विकास होगा इसलिए अपने मानसिक सकारात्मकता को मजबूत करने के लिए यह लेख पूरा अवश्य पढ़ें।
1. घमण्ड – एक राजा की कहानी। Prerak Prasang
एक राज्य के राजा ने अपने बढ़ते उम्र को देखकर, यह फैसला किया की वह राज-पाठ से सन्यास ले लेगा। परन्तु उसका कोई पुत्र नहीं था जिसे वह राज्य सौप कर जिम्मेदारी से मुक्त होता। राजा की एक पुत्री थी जिसकी विवाह की योजना भी राजा को बनानी थी।
इसलिए उसने मंत्रियों को बुलवाया और कहा की कल प्रातः जो भी व्यक्ति सबसे पहले इस नगर में प्रवेश करेगा उसे यहाँ का राजा नियुक्त किया जाएगा, और मेरी पुत्री का विवाह भी उसी के साथ कर दिया जायेगा।फीर अगले दिन राज्य के सैनिकों ने फटेहाल कपडे पहने एक युवक को ले आये और उसका राज्य अभिषेक किया गया।
राजा अपनी पुत्री का विवाह उस युवक के साथ करके, जिम्मेदारियों को सौप कर स्वयं वन प्रस्थान कर गए। धीरे-धीरे समय बीतता गया और उस युवक ने राज्य की बागडोर संभाल ली और एक अच्छे राजा की तरह राज्य की सेवा में लग गया। उस महल में एक छोटी सी कोठरी थी, जिसकी चाबी राजा हमेशा अपने कमर में लटकाये रहता था।
सप्ताह में एक बार वह उस कोठरी में जाता आधा एक घंटा अंदर रहता और बाहर निकल कर बड़ा सा ताला उस कोठरी में लगा देता था, और अपने अन्य कार्यों में लग जाता। इस तरह राजा के बार-बार उस कमरे में जाने से सेनापति को अचम्भा होता कि राज्य का सारा खजाना, सारे रत्न, मणि, हीरे, जवाहरात तो खजांची के पास है।
सेना की शस्त्रा गार की चाबी मेरे पास है और अन्य बहुमूल्य कागजातों की चाबी मंत्री के पास है।फ़िर इस छोटे से कोठरी में एसा क्या है, जो राजा यहां हर सप्ताह अंदर जाता है। और थोड़ी देर बाद बाहर निकल आता है। सेनापति से रहा नहीं गया उसने हिम्मत करके राजा से पूछा की राजन, यदि आप क्षमा करें तो यह बताइये कि उस कमरे में एसी कौन सी वस्तु है, जिसकी सुरक्षा की आपको इतनी फ़िक्र है।
राजा गुस्से से बोले सेनापति, यह तुम्हारे पूछने का विषय नहीं है, यह प्रश्न दोबारा कभी मत करना। अब तो सेनापति का सक और भी बढ़ गया, धीरे-धीरे मंत्री और सभासदों ने भी राजा से पूछने का प्रयाश किया परन्तु राजा ने किसी को भी उस कमरे का रहस्य नहीं बताया। बात महारानी तक पहुंच गयी और आप तो जानते है की स्त्री हट के आगे किसी की भी नहीं चलती, रानी ने खाना-पीना त्याग दिया और उस कोठरी की सच्चाई जानने की जिद करने लगी।
आख़िरकार विवश होकर राजा सेनापति व अन्य सभासदों को लेकर कोठरी के पास गया और दरवाजा खोला, जब कमरे का दरवाजा खुला तो अंदर कुछ भी नहीं था सिवाय एक फटे हुए कपडे के जो दीवाल की खुटी पे लटका था।
मंत्री ने पूछा की महाराज यहा तो कुछ भी नहीं है। राजा ने उस फटे कपडे को अपने हाँथ मे लेते हुए उदास स्वर में कहा कि यही तो है मेरा सबकुछ, जब भी मुझे थोड़ा सा भी अहंकार आता है, तो मै यहाँ आकर इन कपड़ों को देख लिया करता हूँ।मुझे याद आ जाता है की जब मै इस राज्य में आया था तो इस फटे कपडे के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं था। तब मेरा मन शांत हो जाता है और मेरा घमण्ड समाप्त हो जाता है, तब मै वापस बाहर आ जाता हूँ।
मनुष्य के लिए अनमोल उपहार। Prerak Prasang
भगवान ने मनुष्य को खुशियों का खजाना दिया परन्तु अफ़सोस की बात है की मनुष्यों ने इस अनुपक खजाने का मोल समझ नहीं पाया और हमेसा दुरूपयोग किया।इससे भगवान को अत्यंत दुःख हुआ और उन्होंने देवताओं की एक सभा बुलाई और सभी देवताओं से चर्चा किया की मनुष्यों को इस अनमोल उपहार का ज्ञान किस तरह कराया जाये।
चर्चा चली फिर एक देवता ने कहा, यह तो बिल्कुल सरल है भगवन, आप ने ही मनुष्यों को को यह अनुपम उपहार दिया है। सो मनुष्यों को इसकी कद्र नहीं है तो आप इसे वापस ले लीजिये। भगवन बोले, नहीं कभी नहीं उपहार मनुष्यों को दिया जा चूका है और दिए हुए उपहार को वापस लेना सोभा नहीं देता। दूसरे देवता बोले, भगवन हम इस उपहार को किसी ऐसी जगह छुपा देते हैं जिससे मनुष्य इसे आसानी से ढूंढ ना सके।
अन्य देवतागण बोले, परन्तु वह जगह कौन सा होगा जहाँ उपहार को छुपाया जाये। कोई देवता बोले इसे समुद्र की गहराई में छुपा देते हैं। भगवन बोले – मनुष्य समुद्र की गहराई में भी गोता लगाकर इसे प्राप्त कर कर लेगा। अन्य देवतागण बोले – तो चलिए इसे समुद्र के बीचो बीच दबा देते हैं।
भगवन बोले, मनुष्य ऐसे-ऐसे मशीनों का अविष्कार कर लेगा, जो जमींन की गहराइयों को भी खोद कर यह उपहार प्राप्त कर लेगा। इस तरह चर्चा चलती रही, परन्तु कोई सुझाव ही पसंद नहीं आ रहा था। भगवान एक-एक करके सारे सुझाव को नकारते ही जा रहे थे। बहुत सोंच विचार के बाद अंत में स्वयं भगवन को एक सुझाव आया।
भगवन बोले – इस उपहार को मनुष्य के भीतर ही छुपा दिया जाये, मनुष्य अपने बाहार, आस-पास हमेसा खुशियां और प्रसन्ता ढूंढता रहेगा परन्तु खुशियों का उपहार उसके भीतर ही होगा। केवल वही व्यक्ति इस अनमोल उपहार को पा सकेगा, जो इस दुनिया को छोड़ अपने भीतर झांक पायेगा।
दोस्तों प्रसंग का तात्पर्य यह है की हम खुशियों को अपने आस-पास ढूंढते रहते है परन्तु खुशियों का अनमोल खजाना तो हमेसा हमारे भीतर ही विद्यमान रहता है।
अंधे बुजुर्ग की वाणी ।Prerak Prasang
एक समय की बात है एक राजा जंगल में भ्रमण के लिए निकले। भ्रमण करते-करते राजा को प्यास लगी, पानी के लिए इधर-उधर नजर दौड़ने के बाद उन्हें एक झोपडी दिखाई दी। जहां एक अँधा बुजुर्ग आदमी बैठा हुआ था और उसके पास ही जल से भरा हुआ एक मटका रखा हुआ था।
राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया की वे उस व्यक्ति के पास जाये और एक लोटा जल मांग कर लाएं। सिपाही उस व्यक्ति के पास चले गए और उस व्यक्ति से बोलने लगे – ऐ अन्धे एक लोटा पानी दे दे।अँधा व्यक्ति तुरंत अकड़ कर बोला – चल-चल यहां से निकल, तेरे जैसे सिपाहियों से मै नहीं डरता, तुम लोगों को एक बून्द भी पानी नहीं दूंगा मैं। सिपाही निराश होकर लौट आये। उसके बाद राजा ने सेनापति को पानी लाने के लिए भेजा।
सेनापति उस व्यक्ति के पास जाकर बोला – ऐ अन्धे, पानी दे दे, तुझे बहुत सारे रकम इनाम में मिलेगा। अन्धा व्यक्ति फिर अकड़ कर बोला – पहले वाले का यह सरदार मालूम पड़ता है। अन्धे व्यक्ति ने गुस्से से कहा चल यहाँ से निकल, नहीं मिलेगा पानी तुझे। इस तरह सेनापति को भी खाली हाँथ वापस लौटना पड़ा सेनापति को खाली हाँथ वापस आता देख राजा स्वय चल पड़े उस व्यक्ति के पास पानी मांगने।
फिर उस वृद्धजन के पास पहुंचकर सबसे पहले उसे नमस्कार किया और कहा – प्यास से गला सुख रहा है बाबा, एक लोटा पानी दे सकें तो आपकी बड़ी कृपा होगी। अन्धे बुजुर्ग ने सत्कारपूर्वक उन्हें पास बिठाया और कहा ” आप जैसे श्रेष्ट व्यक्ति का राजा जैसे आदर है ” एक लोटा जल क्या मेरा सब कुछ आपकी सेवा में हाजिर है, कोई और सेवा हो तो बताइये।
राजा ने सीतल जल से अपनी प्यास बुझाई फिर नम्र वाणी से पूछा की आपको तो दिखाई नहीं पड़ रहा फिर आपने जल मांगने आये लोगों को कैसे पहचान लिया। उस अन्धे व्यक्ति ने कहा – वाणी से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है।