60+ बेस्ट प्रेरक प्रसंग, 60+ Best Motivational Quotes

Best Motivational Quotes

नगर में एक धनवान सेठ

एक नगर में एक धनवान सेठ रहता था। अपने व्यापार के सिलसिले में उसका बाहर आना-जाना लगा रहता था।

एक बार वह परदेस से लौट रहा था। साथ में धन था, इसलिए तीन-चार पहरेदार भी साथ ले लिए।

लेकिन जब वह अपने नगर के नजदीक पहुंचा, तो सोचा कि अब क्या डर। इन पहरेदारों को यदि घर ले जाऊंगा तो भोजन कराना पड़ेगा।

अच्छा होगा, यहीं से विदा कर दूं। उसने पहरेदारों को वापस भेज दिया।

दुर्भाग्य देखिए कि वह कुछ ही कदम आगे बढ़ा कि अचानक डाकुओं ने उसे घेर लिया।

डाकुओं को देखकर सेठ का कलेजा हाथ में आ गया। सोचने लगा, ऐसा अंदेशा होता तो पहरेदारों को क्यों छोड़ता? आज तो बिना मौत मरना पड़ेगा।

डाकू सेठ से उसका धन आदि छीनने लगे।

तभी उन डाकुओं में से दो को सेठ ने पहचान लिया। वे दोनों कभी सेठ की दुकान पर काम कर चुके थे।

उनका नाम लेकर सेठ बोला, अरे! तुम फलां-फलां हो क्या?

अपना नाम सुन कर उन दोनों ने भी सेठ को ध्यानपूर्वक देखा। उन्होंने भी सेठ को पहचान लिया।

उन्हें लगा, इनके यहां पहले नौकरी की थी, इनका नमक खाया है। इनको लूटना ठीक नहीं है।

उन्होंने अपने बाकी साथियों से कहा, भाई इन्हें मत लूटो, ये हमारे पुराने सेठ जी हैं।

यह सुनकर डाकुओं ने सेठ को लूटना बंद कर दिया।

दोनों डाकुओं ने कहा, सेठ जी, अब आप आराम से घर जाइए, आप पर कोई हाथ नहीं डालेगा।

सेठ सुरक्षित घर पहुंच गया। लेकिन मन ही मन सोचने लगा, दो लोगों की पहचान से साठ डाकुओं का खतरा टल गया। धन भी बच गया, जान भी बच गई।

इस रात और दिन में भी साठ घड़ी होती हैं, अगर दो घड़ी भी अच्छे काम किए जाएं, तो अठावन घड़ियों का दुष्प्रभाव दूर हो सकता है।

इसलिए अठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की..!!

यह चीज खाने से आप कभी नहीं होगें बीमार

धनी आदमी

किसी गांव में एक प्रधान रहता था | प्रधान अपने न्याय के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था | एक बार पास के गांव में दो आदमी लच्छू और यशपाल प्रधान के पास एक मुकदमा लेकर आये |*

यशपाल एक धनी आदमी था जबकि लच्छू एक गरीब किसान | लच्छू का कहना था कि छ: महीने पहले यशपाल ने उससे पांच हज़ार रुपये उधार लिये थे | लेकिन अब वापस करने से मना कर रहा है |

उधर यशपाल का कहना था कि वह लच्छू से कई गुना अमीर है | वह भला लच्छू से उधार क्यों मांगने लगा |

मुकदमा गंभीर था | दोनों ही अपनी अपनी बात पर अड़े हुये थे | प्रधान ने कुछ देर सोच विचार किया तथा अगले दिन आने को कहा |

अगले दिन लच्छू और यशपाल सही समय पर प्रधान के सामने पेश हुये तो प्रधान ने एक दीवार की ओर इशारा करते हुये उनसे कहा – “ तुम दोनों उस दीवार के पीछे चले जाओ | वहां पर दो अलग-अलग बाल्टीया रखी हैं | तुम दोनों बाल्टी मैं से एक-एक लोटा पानी निकालकर अपने हाथ-पैर धो लो | लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि केवल एक लोटा पानी ही इस्तेमाल करना इससे अधिक नहीं | पवित्र होने के बाद ही न्याय देवता की पूजा होगी |”

वे दोनों दीवार के पीछे गये | जहां लच्छू ने तो एक लोटा पानी से अपने हाथ-पैर आसानी से धो लिये | लेकिन यशपाल एक लोटा पानी से अपने पैर भी नहीं धो पाया | उसने अगल-बगल झांककर देखा और यह सुनिश्चित कर लिया कि उसे कोई भी नहीं देख रहा है तो उसने तुरंत एक लोटा पानी और निकाला और पैर पर डाल लिया | उसने देखा कि तब भी उसके पैर पूरी तरह नहीं धूल पाये हैं |

यशपाल ने सोचा कि – “ मैं एक लोटा पानी और इस्तेमाल कर लूं, इस बात पर प्रधान मुझे फांसी ही थोड़ी लटका देगा |” बस उसने दो लोटे पानी और डाल लिये |

दोनों प्रधान के पास पहुंचे | प्रधान ने उनसे पूछा कि – “ क्या दोनों ने एक-एक लौटा पानी ही इस्तेमाल किया है |” तो दोनों ने “हां” मैं उत्तर दिया |

प्रधान बड़ा ही चतुर था | उसने बाल्टीयो में जाकर देखा और जान लिया कि यशपाल ने एक लोटा पानी के बजाय पूरी बाल्टी का पानी इस्तेमाल कर डाला है |

वहां बहुत से लोग बड़ी देर से न्याय की प्रतीक्षा में खड़े हुए थे कि कब प्रधान अपना निर्णय सुनाता है | कुछ सोच-विचार और न्याय देवता की प्रार्थना करके प्रधान ने? अपना निर्णय सुनाया – “ लच्छू सही कहता है, कि यशपाल ने उससे रुपये लिये हैं और वापस करने से मना कर रहा है | मैं यह फैसला देता हूं कि तुरंत ही लच्छू को पांच हज़ार रुपये वापस करें | झूठ बोलने के लिए उससे माफी मांगे और हर्जाने के रूप में एक हज़ार रुपये लच्छू को और दे |” इस बात को सुनकर लोग असमंजस में पड़ गये कि ऐसा कैसे मालूम हो गया |
उन्होंने प्रधान से इस बारे में पूछा प्रधान ने मुस्कुराते हुये कहा – “ सीधी सी बात है ! मैंने दोनों की हाथ-पैर की परीक्षा इसलिए ली थी | जिससे मुझे इन दोनों के स्वभाव के विषय में जानकारी हो जाये | लच्छू ने एक लोटा पानी में ही अपने हाथ-पैर धो डालें | अतः वह कम खर्चे में ही गुजारा करने वाला आदमी है |
जबकि यशपाल ने पूरी बाल्टी पानी खत्म कर दिया | जिससे यह पता चलता है कि वह स्वभाव से मतलबी, स्वार्थी तथा भ्रष्ट आदमी है | साथ ही उसने झूठ भी बोला कि उसने एक ही लौटा पानी इस्तेमाल किया है | अत: यह स्पष्ट हो जाता है कि यशपाल झूठ भी बोलता है | बस इसी से मैंने जान लिया कि यशपाल ने अवश्य ही लच्छू से पांच हज़ार रुपये लिये हैं और उनको वापस नहीं करना पड़े इसलिए वह मना कर रहा है |” सभी उपस्थित लोग उस न्याय से प्रसन्न हुये |
अगले दिन प्रधान के पास एक दूसरा मुकदमा पेश हुआ | दौलतराम का एक मकान बन रहा था | उसमें एक बढ़ई काम कर रहा था |
दौलतराम का कहना था कि – “ बढ़ई ने अवसर देखकर घर में रखे संदूक से रुपयों से भरी थैली चुराई है | जिस समय घर में यह घटना हुयी | उस समय बढ़ई और मेरे भाई का लड़का ही घर में थे | लड़का कहता है कि – ‘ रुपये उसने नहीं लिये |’ बढ़ई कहता है कि – ‘ उसने भी नहीं लिये |’ आप न्याय करें तथा मुझे मेरे रुपये दिलवाये |”
प्रधान ने उन्हें भी अगले दिन आने को कहा | दूसरे दिन सभी लोग वहां एकत्र हो गये | बढ़ई तथा दौलतराम के भतीजे को प्रधान ने अपने पास बुलाया और कहा कि – “ दीवार के पीछे एक छोटा सा डंडा पड़ा है | तुम्हें एक-एक करके वहां जाना है और उस डंडे को अपने सीधे हाथ से पकड़ना है, और फिर वही रखना है | यह मंत्रों से सिद्ध डंडा है जिसने भी पैसे चुराये हैं | डंडा उसके हाथ से चिपक जायेगा | वह उससे छुड़ाने पर भी नहीं छूटेगा |”
इस प्रकार समझा कर उसने पहले दौलतराम के भतीजे को डंडा छूने को दीवार के पीछे भेजा | उसके लौटकर आने पर उसने बढ़ई को भेजा | प्रधान ने अलग ले जाकर दौलतराम के भतीजे की हथेली को सुंघा और फिर दीवार के पीछे से लौटकर आने वाले बढ़ई की हथेली को अलग लेजाकर सुंघा |

न्याय का यह तमाशा

न्याय का यह तमाशा देखने आये लोगों से उसने कहा कि – “ अब मैं न्याय देवता के आदेश से यह निर्णय देता हूं कि रुपयों की थैली बढ़ई ने ही ली है | दौलत राम के भतीजे ने नहीं |”*

यह निर्णय सुनकर लोगों ने देखा की बढ़ई की नजरें नीचे हो गयी | प्रधान ने बढ़ई से कहा – “ बोलो ! चोरी कबूलते हो या नहीं | वैसे मेरे पास इसका पता लगाने के और भी तरीके हैं |”

बढ़ई ने चोरी करना स्वीकार कर लिया | वह रुपयों की थैली अपने घर से वापस देने को दौलतराम तथा उसके भतीजे के साथ वहां से चला गया |

लोगों ने प्रधान से पूछा कि – “ आपने यह कैसे जाना की चोरी बढ़ई ने की है |” तब प्रधान ने हंसते हुये कहा – “ मैंने डंडे पर हींग का खूब गाढ़ा लेप किया हुआ था | जो डंडा पकड़े तो उसकी हथेली से हींग की गंद आने लगे | मैंने यह कहा था कि जिस ने चोरी की होगी उसके हाथ में डंडा चिपक जायेगा | इस पर चोरी न करने वाले दौलतराम के भतीजे ने निर्भीक होकर हथेली से उस डंडे को पकड़ा | क्योंकी सुंघने से उसकी हथेली पर हींग की गंद आ रही थी | जबकि चोरी करने वाले बढ़ई ने डंडा चिपक न जाये इस डर से डंडे को छुआ तक नहीं | क्योंकि वहां उसे देखने वाला तो कोई था, नहीं ! इसलिए वह डंडा छुये बिना वहां से लौटकर आया | उसकी हथेली तथा उंगलियों में हींग की गंद नहीं थी | इस प्रकार मैंने जान लिया कि डंडे को न छूने वाले बढ़ई के मन में चोर है और वही थैली चुराने वाला भी है |”
प्रधान की बुद्धिमता तथा न्याय की सभी ने प्रशंसा की तथा वहां से चल दिये |

पुण्य और कर्तव्य

एक बार की बात है एक बहुत ही पुण्य व्यक्ति अपने परिवार सहित तीर्थ के लिए निकला। कई कोस दूर जाने के बाद पूरे परिवार को प्यास लगने लगी, ज्येष्ठ का महीना था, आस पास कहीं पानी नहीं दिखाई पड़ रहा था। उसके बच्चे प्यास से व्याकुल होने लगे। समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। अपने साथ लेकर चला गया पानी भी समाप्त हो चुका था।
एक समय ऐसा आया कि उसे भगवान से प्रार्थना करनी पड़ी कि, “हे प्रभु ! अब आप ही कुछ करो मालिक।” इतने में उसे कुछ दूर पर एक साधु तप करता हुआ नजर आया। व्यक्ति ने उस साधु से जाकर अपनी समस्या बताई। साधु बोले कि यहाँ से एक कोस दूर उत्तर की दिशा में एक छोटी दरिया बहती है जाओ जाकर वहाँ से पानी की प्यास बुझा लो।
साधु की बात सुनकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई और उसने साधु का धन्यवाद किया। पत्नी एवं बच्चो की स्थिति नाजुक होने के कारण वहीं रुकने के लिया बोला और खुद पानी लेने चला गया।
जब वो दरिया से पानी लेकर लौट रहा था तो उसे रास्ते में पांच व्यक्ति मिले जो अत्यंत प्यासे थे। पुण्य आत्मा को उन पांचो व्यक्तियों की प्यास देखी नहीं गयी और अपना सारा पानी उन प्यासों को पिला दिया। जब वो दोबारा पानी लेकर आ रहा था तो पांच अन्य व्यक्ति मिले जो उसी तरह प्यासे थे। उस पुण्य आत्मा ने फिर अपना सारा पानी उनको पिला दिया।
यही घटना बार-बार हो रही थी, और काफी समय बीत जाने के बाद जब वो नहीं आया तो साधु उसकी तरफ चल पड़ा। बार बार उसके इस पुण्य कार्य को देख कर साधु बोला, “हे पुण्य आत्मा ! तुम बार-बार अपना बाल्टी भरकर दरिया से लाते हो और किसी प्यासे के लिए खाली कर देते हो। इससे तुम्हें क्या लाभ मिला ?” पुण्य आत्मा ने कहा, “मुझे क्या मिला ? या क्या नहीं मिला, इसके बारें में मैंने कभी नहीं सोचा, पर मैंने अपना स्वार्थ छोड़ कर अपना धर्म निभाया है।”
साधु बोला, “ऐसे धर्म निभाने से क्या फायदा जब तुम अपना कर्तव्य नहीं निभा पाये। बिना जल के तुम्हारे अपने बच्चे और परिवार ही जीवित ना बचें ? तुम अपना धर्म ऐसे भी निभा सकते थे जैसे मैंने निभाया।” पुण्य आत्मा ने पूछा, “कैसे महाराज ?”
साधु बोला, “मैंने तुम्हे दरिया से पानी लाकर देने के बजाय दरिया का रास्ता ही बता दिया। तुम्हे भी उन सभी प्यासों को दरिया का रास्ता बता देना चाहिए था, ताकि तुम्हारी भी प्यास मिट जाये और अन्य प्यासे लोगों की भी। फिर किसी को अपनी बाल्टी खाली करने की जरुरत ही नहीं होती।” इतना कहकर साधु अंतर्ध्यान हो गया।
पुण्य आत्मा को सब कुछ समझ आ गया कि केवल स्वयं पुण्य कमाने में ना लगकर, अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए दूसरों को भी पुण्य की राह दिखायें। किसी का भी भला करने का सबसे सही तरीका यही है कि उसे परमात्मा और सच्चाई की राह दिखा दें।

पीहर या ससुराल

तीज का त्यौहार आने वाला था। तुलसी जी की दोनों बहुओं के पीहर से तीज का सामान भर भर के उनके भाइयों द्वारा पहुंचा दिया गया था। छोटी बहू मीरा का यह शादी के बाद पहला त्यौहार था। चूँकि मीरा के माता पिता का बचपन में ही देहांत हो जाने के कारण, उसके चाचा चाची ने ही उसे पाला था इसलिए और हमेशा हॉस्टल में रहने के कारण उसे यह सब रीति-रिवाजों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। पढ़ने में होशियार मीरा को कॉलेज के तुरंत बाद जॉब मिल गई। आकाश और वो दोनों एक ही कंपनी में थे। जहां दोनों ने एक दूसरे को पसंद किया और घरवालों ने भी बिना किसी आपत्ति के दोनों की शादी करवा दी। आज जब मीरा ने देखा कि उसकी जेठानियों के पीहर से शगुन में ढ़ेर सारा सुहाग का सामान, साड़ियां, मेहंदी, मिठाईयां इत्यादि आया है तो उसे अपना कद बहुत छोटा लगने लगा। पीहर के नाम पर उसके चाचा चाची का घर तो था, परंतु उन्होंने मीरा के पिता के पैसों से बचपन में ही हॉस्टल में एडमिशन करवा कर अपनी जिम्मेदारी निभा ली थी और अब शादी करवा कर उसकी इतिश्री कर ली थी। आखिर उसका शगुन का सामान कौन लाएगा, ये सोच सोचकर मीरा की परेशानी बढ़ती जा रही थी। जेठानियों को हंसी ठहाका करते देख उसे लगता शायद दोनों मिलकर उसका ही मजाक उड़ा रही हैं। आज उसे पहली बार मां बाप की सबसे ज्यादा कमी खल रही थी।*

अगले दिन मीरा की सास तुलसी जी ने उसे आवाज लगाते हुए कहा, “मीरा बहू, जल्दी से नीचे आ जाओ, देखो तुम्हारे पीहर से तीज का शगुन आया है।” यह सुनकर मीरा भागी भागी नीचे उतरकर आँगन में आई और बोली, “चाचा चाची आए हैं क्या मम्मी जी? कहां हैं? मुझे बताया भी नहीं कि वे लोग आने वाले हैं!”मीरा एक सांस में बोलती चली गई। उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसके चाचा चाची भी कभी आ सकते हैं। तभी तुलसी जी बोलींं, “अरे नहीं, तुम्हारे चाचा चाची नहीं आए बल्कि भाई और भाभियां सब कुछ लेकर आए हैं।” मीरा चौंंककर बोली, “पर मम्मी जी मेरे तो कोई भाई नहीं हैं फिर…??”
“ड्रॉइंग रूम में जाकर देखो, वो लोग तुम्हारा ही इंतजार कर रहे हैं”।तुलसी जी ने फिर आँखे चमकाते हुए कहा। मीरा कशमकश में उलझी धीरे धीरे कदम बढ़ाती हुई, ड्रॉइंग रूम में घुसी तो देखा उसके दोनों जेठ जेठानी वहां पर सारे सामान के साथ बैठे हुए थे।पीछे-पीछे तुलसी जी भी आ गईंं और बोलींं, “भई तुम्हारे पीहर वाले आए हैं, खातिरदारी नहीं करोगी क्या?” मीरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो कभी सास को देखती तो कभी बाकी सभी लोगों को। उसके मासूम चेहरे को देख कर सबकी हंसी छूट पड़ी। तुलसी जी बोलींं, “कल जब तुम्हारी जेठानियों के पीहर से शगुन आया था तो हम सबने ही तुम्हारी आंखों में वह नमी देख ली थी। जिसमें माता पिता के ना होने का गहरा दुःख समाया था। पीहर की महत्ता हम औरतों से ज्यादा कौन समझ सकता है भला!इसलिए हम सबने तभी तय कर लिया था कि आज हम सब एक नया रिश्ता कायम करेंगे और तुम्हें तुम्हारे पीहर का सुख जरूर देंगे।”मीरा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। जिन रिश्तोंं से उसे कल तक मजाक बनने का डर सता रहा था। उन्हीं रिश्तों ने आज उसे एक नई सोच अपनाकर उसका पीहर लौटा दिया था। मीरा की आंखों से खुशी और कृतज्ञता के आंसू बह रहे थे।।
*समाज में एक नई सोच को जन्म देने वाले उसके ससुराल वालों ने मीरा का कद बहुत ऊंचा कर दिया था। साथ ही साथ अपनी बहू के ससुराल को ही अपना पीहर बनाकर समाज में उनका कद बहुत ऊंचा उठ चूका था।

गरु नानक देव जी और गरीब की रोटी

गुरु नानक देव जी के समय एक प्रतिष्ठित व धनी व्यक्ति रहता था जिसका नाम मलिक भागो था| एक दिन उसने अपने पिता का श्राद्ध किया| दूर-दूर से संत महात्मा बुलाए गए और भोजन खिलाया गया, ताकि उसे धर्म लाभ मिल सके।

उन दिनों गुरु नानक देव जी भी उस स्थान पर आए हुए थे| गुरु नानक देव जी एक बढ़ई (लालो) की विनती करने पर वहां आए थे और उन्हीं के घर का खाना खाते थे।

किसी व्यक्ति ने मलिक भागों से शिकायत की कि यहां एक महात्मा आए हुए हैं परंतु वह एक बढ़ई के घर का खाना खाते हैं।

जब मलिक भागों को इस बात का पता चला कि लालो के घर एक महात्मा ठहरे हुए हैं तो उसमें अपने आदमी भेज कर गुरु नानक और उनके साथियों को भोजन पर आमंत्रित किया| परंतु गुरु साहिब ने उनके निमंत्रण को ठुकरा दिया।

मलिक भागो ने सोचा कि जब तक सभी महात्मा उसके घर का भोजन नहीं खा लेंगे तब तक उसका भोज अधूरा रहेगा| आखिर में गुरु नानक देव जी मलिक भागों के घर आ गए और लालो भी उनके पीछे-पीछे वहां आ गया|

मलिक भागो ने गुरु साहिब से पूछा:-” आप ब्रह्म भोज में क्यों नहीं आए थे महाराज?”

गुरु साहिब ने कहा:-” ला मालिक! अब खिला दे।

जब गुरु साहिब ने पीछे पलट कर देखा कि लालो बढ़ई खड़ा है, तो गुरु साहिब ने उससे कहा:-“लालो! तू भी अपनी रोटी ले आ|”

लालो दौड़कर गया और कुछ रोटी तथा बिना नमक का साग ले आया| उधर मलिक भागों के आदमी पूरी कचोरी और अन्य पकवान ले आए।

गुरु साहिब ने अपने दाहिने हाथ में रोटी और उसके ऊपर साग रखा हुआ था तथा बाएं हाथ में पूरी कचोरी पकड़ी हुई थी| उन्होंने सबके सामने उनको निचोड़ा तो लालो की रोटी से दूध निकला और मलिक भागों की पूरी कचोरी से खून।

गुरु साहिब ने कहा:-” देखो मलिक! मैंने तेरा भोज क्यों नहीं खाया था| यह ब्रह्मभोज नहीं बल्कि लोगों का खून है| ब्रह्मभोज तो हमेशा लालो के घर का ही होता है।

मित्रों” सही रास्ते से कमाए हुए धन से ही बरकत होती है| नेक कमाई के बिना परमार्थ में सफलता नहीं मिलती।

बटी की चूड़ी

बरसाने में एक सेठजी रहते थे। उनके कई कारोबार थे, तीन बेटे तीन बहुएँ थी,

सब के सब आज्ञाकारी थे, लेकिन सेठजी के बेटी नहीं थी, यही अभाव उन्हें खलता था। यह चिंता संतों के दर्शन से कम हुई।

संत बोले मन में जो अभाव हो उस पर भगवान का भाव स्थापित कर लो।

सुनो सेठ तुमकू मिल्यो बरसाने का वास,
यदि मानो राधे सुता काहे रहो उदास।

सेठ जी ने राधा रानी का एक चित्र मँगवाया और अपने घर में लगा कर पुत्री भाव से रखते।

रोज सुबह उठ कर राधेराधे कहते भोग लगाते और दुकान से लौटकर राधेराधे कहकर सोते

तीन बहू बेटे हैं घर में, सुख सुविधा है पूरी,
संपति भरी भवन में रहती, नहीं कोई मजबूरी,
कृष्ण कृपा से जीवन पथ पे आती न कोई बाधा,
मैं हूँ पिता बहुत बड़भागी, बेटी है मेरी राधा।

एक दिन एक मनिहारी चूड़ी पहनाने सेठ के अहाते में आई और चूड़ी पहनने की गुहार लगाई। तीनों बहुएँ बारी बारी से चूड़ी पहन कर चली गयीं।

फिर एक हाथ और बढ़ा तो मनिहारिन ने सोचा कि कोई रिश्तेदार आया होगा उसने चूड़ी पहनाई और चली गयी।

सेठजी की दुकान पर पहुँच कर पैसे माँगे और कहा कि इस बार पैसे पहले से ज्यादा चाहिए। सेठजी बोले कि क्या चूड़ी मँहगी हो गयी है?

मनिहारिन बोली, नहीं सेठजी आज मैं चार लोगो को चूड़ी पहना कर आ रही हूँ।
सेठ जी ने कहा कि तीन बहुओं के अलावा चौथा कौन है? झूठ मत बोल, यह ले तीन का पैसा। मनिहारिन बेचारी तीन का पैसा ले कर चली गयी।

सेठजी ने घर पर पूछा कि चौथा कौन था जिसने चूड़ी पहनी हैं? बहुएँ बोली कि हम तीन के अलावा तो कोई भी नही था।

रात को सोने से पहले सेठजी पुत्री राधारानी को स्मरण करके सो गये। नींद में राधा जी प्रगट हुईं, सेठजी बोले “बेटी बहुत उदास हो, क्या बात है?

बृषभानु दुलारी बोलीं,
“तनया बनायो तात, नात ना निभायो है..
चूड़ी पहनि लीनी मैं, जानि पितु गेह किंतु,
आप मनिहारिन को मोल ना चुकायो है।
तीन बहू याद किन्तु बेटी नही याद रही,
नैनन श्रीराधिका के नीर भरि आयो है।
कैसी भई दूरी कहो कौन मजबूरी हाय,
आज चार चूड़ी काज मोहि बिसरायो है???

सेठजी की नींद टूट गयी पर नीर नही टूटा, रोते रहे, सबेरा हुआ, स्नान ध्यान करके मनिहारिन के घर पहुँच गये। मनिहारिन देखकर चकित हुई।

सेठ जी आंखों में आँसू लिये बोले
धन धन भाग तेरो मनिहारी..
तोसे बड़भागी नही कोई, संत महंत पुजारी,
धन धन भाग तेरो मनिहारी..
“मैने मानी सुता किन्तु निज नैनन नहीं निहारी,
चूड़ी पहन गयीं तेरे हाथन ते श्री बृषभानु दुलारी।
धन धन भाग तेरो मनिहारी..
बेटी की चूड़ी पहिराई लेहु, जाऊँ तेरी बलिहारी,
हाथ जोड़ बिनती करूँ, क्षमियो चूक हमारी।
“जुगल नयन जलते भरे मुख ते कहे न बोल,”
“मनिहारिन के पाँय पड़ि लगे चुकावन मोल।”
मनिहारीन सोचने लगी,
जब तोहि मिलो अमोल धन,
अब काहे माँगत मोल,
ऐ मन मेरे प्रेम से श्री राधे राधे बोल।

सगठन में ही एकता है

एक राजा था | उसका मंत्री बहुत बुद्धिमान था | एक बार राजा ने अपने मंत्री से प्रश्न किया –मंत्री जी! भेड़ों और कुत्तों की पैदा होने कि दर में तो कुत्ते भेड़ों से बहुत आगे हैं, लेकिन भेड़ों के झुंड के झुंड देखने में आते हैं और कुत्ते कहीं-कहीं एक आध ही नजर आते है | इसका क्या कारण हो सकता है ?”

मंत्री बोला – “ महाराज! इस प्रश्न का उत्तर आपको कल सुबह मिल जायेगा |”

राजा के सामने उसी दिन शाम को मंत्री ने एक कमरे में बिस कुत्ते बंद करवा दिये और उनके बीच रोटियों से भरी एक टोकरी रखवा दी |”

दूसरे कमरे में बीस भेड़े बंद करवा दी और चारे की एक टोकरी उनके बीच में रखवा दी | दोनों कमरों को बाहर से बंद करवाकर, वे दोनों लौट गये |

सुबह होने पर मंत्री राजा को साथ लेकर वहां आया | उसने पहले कुत्तों वाला कमरा खुलवाया | राजा को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि बीसो कुत्ते आपस में लड़-लड़कर अपनी जान दे चुके हैं और रोटियों की टोकरी ज्यों की त्यों रखी है | कोई कुत्ता एक भी रोटी नहीं खा सका था।

इसके पश्चात मंत्री राजा के साथ भेड़ों वाले कमरे में पहुंचा | कमरा खोलने के पश्चात राजा ने देखा कि बीसो भेड़े एक दूसरे के गले पर मुंह रखकर बड़े ही आराम से सो रही थी और उनकी चारे की टोकरी एकदम खाली थी |

मंत्री राजा से बोला – “ महाराज! कुत्ते एक भी रोटी नहीं खा सके तथा आपस में लड़-लड़कर मर गये | उधर भेड़ों ने बड़े ही प्रेम से मिलकर चारा खाया और एक दूसरे के गले लगकर सो गयी |
यही कारण है, कि भेड़ों के वंश में वृद्धि है | समृद्धि है | उधर कुत्ते हैं, जो एक-दूसरे को सहन नहीं कर सकते | जिस बिरादरी में इतनी घृणा तथा द्वेष होगा | उसकी वृद्धि भला कैसे हो सकती है |”

राजा मंत्री की बात से पूरी तरह संतुष्ट हो गया | उसने उसे बहुत-सा पुरस्कार दिया | वह मान गया था, कि आपसी प्रेम तथा भाईचारे से ही वंश वृद्धि होती है | मंत्री ने इस संबंध में राजा को एक कहानी सुनायी –

एक बार ब्रह्मा ने देवता तथा असुरों की एक सभा बुलवायी | सभी देवता तथा दानव ब्रह्मा के दरबार में उपस्थित हुये | ब्रह्मा ने वैसे तो दोनों ही समुदाय की बड़ी आवभगत की, लेकिन देवताओं के प्रति उनके मन में अधिक श्रद्धा तथा सम्मान था |

दानवों ने इस बात को भाप लिया की, ब्रह्मा के मन में देवताओं के प्रति अधिक मान-सम्मान है | दिखाने के लिए वे बराबर का बर्ताव कर रहे हैं |

दानवों ने राजा से कहा – “ ब्रह्मा जी! देखिये आप देवताओं को अधिक महत्व दे रहे हैं | उनके प्रति आपके ह्रदय में अधिक सम्मान है | अगर ऐसा ही है, तो फिर हमें यहां क्यों बुलवाया |”

ब्रह्मा ने बहुत समझाया बुझाया; किंतु दानवों का क्रोध कम नहीं हुआ
अब तो ब्रह्मा ने संकल्प लिया कि दानवों को इस बात का बोध कराना ही होगा कि वे देवताओं की बराबरी नहीं कर सकते |

ब्रह्मा जी ने असुरों के राजा से कहा – “ मुझे प्रसन्नता होगी | यदि आप देवताओं के समान बन जाये, उनसे पीछे न रहे |”

हम तो पहले ही उनसे बहुत आगे हैं | असुरों के राजा ने अकड़कर कहा |

बुरा ना माने तो, मैं आपकी परीक्षा ले लूं |” ब्रह्मा जी ने पूछा ।

ठीक है | हो जाये परीक्षा |” दानवों के राजा ने कहा |

रात के भोजन में ब्रह्मा जी ने देवताओं दानवो सबके हाथों पर उंगलियों तक डंडे बधवा दिये |जिससे दोनों हाथ मूड़ न सके |

सबसे पहले ब्रह्मा ने असुरों के आगे लड्डूओ के बड़े-बड़े थाल परोसे और कहा कि “ जो अधिक लड्डू खायेगा | वही श्रेष्ठ होगा |”

दानवों ने लड्डू उठा तो लिये; किंतु हाथ में डंडे बंधे होने के कारण वे लड्डूओं को अपने मुंह तक नहीं ले जा सके और ऊपर उछालने कर मुंह मे लेने का प्रयास करने लगे| यह एक विकट समस्या उत्पन्न हो गयी | बहुत प्रयास करने के पश्चात भी कोई भी दानव लड्डू खाने में सफल नहीं हो सका | सभी उठ गये |
अब देवताओं की बारी आयी उनके हाथ पर भी उसी प्रकार डंडे बांधे गये उनके हाथ भी मूड नहीं सकते थे |
पंक्ति में बैठे सभी देवताओं के सम्मुख लड्डू परोसे गये देवताओं ने दो-दो जोड़ी बना ली एक देवता दूसरे देवता को लड्डू खिला रहा था सभी दानव यह तमाशा देख रहे थे उन्हें मानना पड़ा कि वास्तव में देवता दानवों से श्रेष्ठ है |

राजा को मंत्री की कहानी बहुत पसंद आयी | वह मान गया कि वास्तव में एकता द्वारा कुछ भी कार्य किया जा सकता है..!!

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