50+ Best Motivational stories in Hindi Pdf | सफलता प्रेरणादायक हिंदी कहानियां 2022

प्रेरणादायक हिंदी कहानियां | छोटा प्रेरक प्रसंग | शिक्षाप्रद प्रेरक प्रसंग pdf | विद्यार्थियों के लिए प्रेरक प्रसंग 

शिक्षाप्रद छोटे प्रेरक प्रसंग

जिंदगी में सफलता बहुत ही जरूरी हैं , success को पाने का रास्ता इतना आसान भी नहीं है इसीलिए कहा जाता है की Hard work is the only की of success और इस कठिन राह में व्यक्ति को मोटिवेट रहना बहुत जरूरी है क्योंकि मोटिवेशन के बिना वह उस रास्ते को पार नहीं कर सकता बीच रास्ते पर ही अपनी हिम्मत हार जाता है उस मोटिवेशन को बनाए रखने के लिए हमने पेश की है कुछ चुनिंदा बेहतरीन प्रेरणादायक प्रेरक प्रसंग और मोटिवेशनल स्टोरीज जो आपके लिए एक प्रेरणा स्रोत का काम करेगी ।

Contents

जान लगा दो या जाने दो – शिक्षाप्रद प्रेरक प्रसंग

मोहित एक Runner था, इसका सपना ओलंपिक में जाना था। वह हर मैराथन में हिस्सा लेता था । लेकिन आज तक कोई भी मैराथन पूरा नहीं कर पाया और इस बात पर उसे बहुत अफसोस था । वह खुद में ही खुद से हारने लगा था, पर उसने अभी तक हार नहीं मानी थी, वह कोशिश पे कोशिश किए जा रहा था। हर साल मोहित मैराथन में हिस्सा लेता था पर उसे पूरा नहीं कर पाता था । वह मैदान मे जाते ही अपने {competitor} प्रतियोगी को देख hopeless हो जाता । उनके सामने खुद से खुद की कमी निकालता, खुद मे वो भरोसा नहीं रख पाता ।
लेकिन हर साल की भांति इस साल मैराथन होने में सिर्फ 2 महीने ही बचे थे । मोहित ने रोज कसरत और दौड़ लगाना शुरू कर दिया और उसने खुद से वादा किया कि इस बार मैं मैराथन जरूर पूरा करूंगा । इस फैसले के बाद उसने कड़ी मेहनत भी चालू कर दी और रोज कुछ ज्यादा कुछ ज्यादा वह अपनी क्षमता को बढ़ाने लगा। महीनो की मेहनत थीं और वो दिन आ गया जिसका मोहित को बेसब्री से इंतजार था। हां दोस्तों आप सही सोच रहे हैं मैराथन। मोहित मैदान पहुंचा और हर बार की भांति इस बार भी hopeless होने लगा मगर अंदर से आवाज आई मैं कर सकता हूं । आसान है ।
बाकी सब runners के साथ मोहित ने भी दौड़ना शुरू किया , लेकिन कुछ दूर तक दौड़ लगाने के बाद उसके पैरों में दर्द होने लगा और उसे लगा इस बार भी नहीं हो पाएगा, लेकिन खुद को उसने काबू किया और बोला मोहित अगर दौड़ नहीं पा रहे हो तो jogging (धीरे-धीरे चलना) ही कर लो । लेकिन आगे बढ़ो, मोहित में jogging करना शुरू किया मतलब पहले के मुकाबले जरा धीमा हो गया । कुछ आगे बढ़ने के बाद उसके पैरों की नसें भी खींचने लग। मोहित को अब मैराथन पूरा करना नामुमकिन – सा लगने लगा । मगर अंदर से आवाज आई jogging नहीं कर पा रहे हो तो चलते हुए race पूरा करो । चलते रहो रुको मत मैराथन जरूर पूरा करना है और फिर वह चलने लगा ।
उसकी काफी धीमी गति हो गई थी । सारे runners उससे एक – एक करते आगे निकलते जा रहे थे और मोहित उन्हें आगे निकलते हुए देखने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहा था । तभी अचानक लड़खड़ा कर वो जमीन पर गिर पड़ा | जमीन पर पड़े – पड़े उसके दिमाग में ख्याल आने लगा कि इस बार भी मैं मैराथन पूरा नहीं कर पाया । तभी मोहित के अंदर से आवाज आई, जिसने कहा उठो मोहित चल नहीं पा रहे हो तो लड़खड़ाते हुए Finish Line को पार कर लो। Finish Line अब बहुत सामने है । मोहित लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ा और Finish Line को किसी तरह पार कर लिया । और जो खुशी जो (Satisfaction) संतुस्टी उसने महसूस की वो इससे पहले उसने
कभी नहीं की थी ।
शिक्षा:-
मित्रों ! मोहित मैराथन मे हारा जरूर पर उसने खुद से किए हुए वादे को पूरा किया । मोहित ने खुद की decision (फेसला) लेने के बाद खुद की insult (अपमान) नहीं की। मोहित रोज मेहनत करता था उसका रास्ता कठिन जरूर था , पर मुस्किल नहीं , एक कविता है दोस्तों की लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
तो दोस्तों कोशिश करते रहिए , किसी भी काम को करने से पहले हजार बार सोचिए , लेकिन जब एक बार फैसला ले लिया हो तो उसे पूरा करके ही छोड़ना अगर आप ऐसा हमसे करते रहोगे, अगर आप कोई काम को करना चाहता है तो अभी और इसी वक्त शुरू कीजिए। सोचने में अपना वक्त बर्बाद मत कीजिए ।
आखिर मे यही कहूँगा जान लगा दो या जाने दो ।

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बुराई करने वालों को जवाब देने , में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए | आज का प्रेरक प्रसङ्ग

एक प्रचलित कथा के अनुसार किसी गांव में एक संत का आगमन हुआ। संत बहुत ही सरल स्वभाव के थे। उनके पास आने लोगों को ज्ञान की सही बातें बताते थे। इस कारण गांव में उनकी ख्याति काफी फैल गई थी। संत की प्रसिद्धि देखकर एक पंडित उनसे घृणा करने लगा। पंडित को डर था कि अगर संत के पास सभी लोग जाने लगेंगे तो उसका धंधा चौपट हो जाएगा। इसीलिए पंडित ने गांव में संत के लिए गलत बातें फैलाना शुरू कर दी। एक दिन संत के शिष्य को ये मालूम हुआ तो वह क्रोधित हो गया।
शिष्य तुरंत ही अपने गुरु के पास आया और बोला कि गुरुदेव वह पंडित आपके बारे झूठी बातें फैला रहा है। हमें उसे जवाब देना चाहिए। संत ने कहा कि तुम गुस्सा न करो, क्योंकि अगर उसे जवाब देंगे तो क्या ये बातें फैलना बंद हो जाएंगी? ये बातें तो होती रहेंगी। इसीलिए हमें उसे जवाब देने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। संत ने शिष्य को समझाया कि जब हाथी चलता है तो कुत्ते भौंकते ही हैं। अगर हाथी उन कुत्तों से लड़ने लगेगा तो उसका ही कद छोटा हो जाएगा, वह कुत्तों के समान माना जाएगा। इसीलिए हाथी कुत्तों के भौंकने पर ध्यान नहीं देता है।
वह आराम से अपने रास्ते चलते रहता है। ये बातें सुनकर शिष्य का क्रोध शांत हो गया।
शिक्षा:-
इस कथा की सीख यह है कि हमें बुराई करने वालों को जवाब देने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने पर हमारा ही नुकसान है। हमें सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना चाहिए। बुराई करने वाले लोग कभी शांत नहीं हो सकते हैं। इसीलिए ऐसी बातों पर क्रोधित नहीं होना चाहिए ।

सोच बदलो, जिंदगी बदल जायेगी लघु प्रेरक प्रसंग

एक गाँव में सूखा पड़ने की वजह से गाँव के सभी लोग बहुत परेशान थे, उनकी फसले खराब हो रही थी, बच्चे भूखे-प्यासे मर रहे थे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था की इस समस्या का समाधान कैसे निकाला जाय। उसी गाँव में एक विद्वान महात्मा रहते थे। गाँव वालो ने निर्णय लिया उनके पास जाकर इस समस्या का समाधान माँगने के लिये, सब लोग महात्मा के पास गये और उन्हें अपनी सारी परेशानी विस्तार से बतायी, महात्मा ने कहा कि आप सब मुझे एक हफ्ते का समय दीजिये मैं आपको कुछ समाधान ढूँढ कर बताता हूँ ।
गाँव वालो ने कहा ठीक है और महात्मा के पास से चले गये। एक हफ्ते बीत गये लेकिन साधू महात्मा कोई भी हल ढूँढ न सके और उन्होंने गाँव वालो से कहा कि अब तो आप सबकी मदद केवल ऊपर बैठा वो भगवान ही कर सकता है। अब सब भगवान की पूजा करने लगे भगवान को खुश करने के लिये, और भगवान ने उन सबकी सुन ली और उन्होंने गाँव में अपना एक दूत भेजा। गाँव में पहुँचकर दूत ने सभी गाँव वालो से कहा कि “आज रात को अगर तुम सब एक-एक लोटा दूध गाँव के पास वाले उस कुवे में बिना देखे डालोगे तो कल से तुम्हारे गाँव में घनघोर बारिश होगी और तुम्हारी सारी परेशानी दूर हो जायेगी।” इतना कहकर वो दूत वहा से चला गया ।
गाँव वाले बहुत खुश हुए और सब लोग उस कुवे में दूध डालने के लिये तैयार हो गये लेकिन उसी गाँव में एक कंजूस इंसान रहता था उसने सोचा कि सब लोग तो दूध डालेगें ही अगर मैं दूध की जगह एक लोटा पानी डाल देता हूँ तो किसको पता चलने वाला है। रात को कुवे में दूध डालने के बाद सारे गाँव वाले सुबह उठकर बारिश के होने का इंतेजार करने लगे लेकिन मौसम वैसा का वैसा ही दिख रहा था और बारिश के होने की थोड़ी भी संभावना नहीं दिख रही थी ।
देर तक बारिश का इंतेजार करने के बाद सब लोग उस कुवे के पास गये और जब उस कुवे में देखा तो कुवा पानी से भरा हुआ था और उस कुवे में दूध का एक बूंद भी नहीं था। सब लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे और समझ गये कि बारिश अभी तक क्यों नहीं हुई। और वो इसलिये क्योँकि उस कंजूस व्यक्ति की तरह सारे गाँव वालो ने भी यही सोचा था कि सब लोग तो दूध डालेगें ही, मेरे एक लोटा पानी डाल देने से क्या फर्क पड़ने वाला है। और इसी चक्कर में किसी ने भी कुवे में दूध का एक बूँद भी नहीं डाला और कुवे को पानी से भर दिया।
शिक्षा:- Moral of the Story
इसी तरह की गलती आज कल हम अपने real life में भी करते रहते हैं, हम सब सोचते है कि हमारे एक के कुछ करने से क्या होने वाला है लेकिन हम ये भूल जाते है कि “बूंद-बूंद से सागर बनता है।“

मदद – प्रेरक प्रसंग कहानी

उस दिन सबेरे आठ बजे मैं अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला । मैं रेलवे स्टेशन पँहुचा , पर देरी से पँहुचने के कारण मेरी ट्रेन निकल चुकी थी । मेरे पास दोपहर की ट्रेन के अलावा कोई चारा नही था । मैंने सोचा कही नाश्ता कर लिया जाए ।
बहुत जोर की भूख लगी थी । मैं होटल की ओर जा रहा था । अचानक रास्ते में मेरी नजर फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी । दोनों लगभग 10-12 साल के रहे होंगे .।बच्चों की हालत बहुत खराब थी ।
कमजोरी के कारण अस्थि पिंजर साफ दिखाई दे रहे थे ।वे भूखे लग रहे थे । छोटा बच्चा बड़े को खाने के बारे में कह रहा था और बड़ा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था । मैं अचानक रुक गया ।दौड़ती भागती जिंदगी में पैर ठहर से गये ।
जीवन को देख मेरा मन भर आया । सोचा इन्हें कुछ पैसे दे दिए जाएँ । मैं उन्हें दस रु. देकर आगे बढ़ गया तुरंत मेरे मन में एक विचार आया कितना कंजूस हूँ मैं ! दस रु. का क्या मिलेगा ? चाय तक ढंग से न मिलेगी ! स्वयं पर शर्म आयी फिर वापस लौटा । मैंने बच्चों से कहा – कुछ खाओगे ?
बच्चे थोड़े असमंजस में पड़ गए ! जी । मैंने कहा बेटा ! मैं नाश्ता करने जा रहा हूँ , तुम भी कर लो ! वे दोनों भूख के कारण तैयार हो गए । मेरे पीछे पीछे वे होटल में आ गए । उनके कपड़े गंदे होने से होटल वाले ने डांट दिया और भगाने लगा ।
मैंने कहा भाई साहब ! उन्हें जो खाना है वो उन्हें दो , पैसे मैं दूँगा ।होटल वाले ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा..! उसकी आँखों में उसके बर्ताव के लिए शर्म साफ दिखाई दी ।
बच्चों ने नाश्ता मिठाई व लस्सी माँगी । सेल्फ सर्विस के कारण मैंने नाश्ता बच्चों को लेकर दिया । बच्चे जब खाने लगे , उनके चेहरे की ख़ुशी कुछ निराली ही थी । मैंने भी एक अजीब आत्म संतोष महसूस किया । मैंने बच्चों को कहा बेटा ! अब जो मैंने तुम्हे पैसे दिए हैं उसमें एक रु. का शैम्पू ले कर हैण्ड पम्प के पास नहा लेना ।
और फिर दोपहर शाम का खाना पास के मन्दिर में चलने वाले लंगर में खा लेना ।मैं नाश्ते के पैसे चुका कर फिर अपनी दौड़ती दिनचर्या की ओर बढ़ निकला ।
वहाँ आसपास के लोग बड़े सम्मान के साथ देख रहे थे । होटल वाले के शब्द आदर में परिवर्तित हो चुके थे । मैं स्टेशन की ओर निकला , थोडा मन भारी लग रहा था । मन थोडा उनके बारे में सोच कर दु:खी हो रहा था ।
रास्ते में मंदिर आया । मैंने मंदिर की ओर देखा और कहा – हे भगवान ! आप कहाँ हो ? इन बच्चों की ये हालत ! ये भूख आप कैसे चुप बैठ सकते हैं !
दूसरे ही क्षण मेरे मन में विचार आया , अभी तक जो उन्हें नाश्ता दे रहा था वो कौन था ? क्या तुम्हें लगता है तुमने वह सब अपनी सोच से किया ? मैं स्तब्ध हो गया ! मेरे सारे प्रश्न समाप्त हो गए ।
ऐसा लगा जैसे मैंने ईश्वर से बात की हो ! मुझे समझ आ चुका था हम निमित्त मात्र हैं । उसके कार्य कलाप वो ही जानता है , इसीलिए वो महान है !
भगवान हमें किसी की मदद करने तब ही भेजता है , जब वह हमें उस काम के लायक समझता है ।यह उसी की प्रेरणा होती है । किसी मदद को मना करना वैसा ही है जैसे भगवान के काम को मना करना ।

एकाग्रता का महत्त्व – आज की प्रेरक कहानी

वीर बहादुर एक सर्कस में काम करता था। वह खतरनाक शेर को भी कुछ ही समय में पालतू बना लेता था। एक दिन सर्कस में एक नौजवान आया। वह जानवरों के हाव-भाव और हरकतों पर रिसर्च कर रहा था।
उसने वीर बहादुर से कहा, ‘आपका बहुत नाम सुना है। खतरनाक शेर को भी पालतू कैसे बना लेते हैं आप?’ वीर बहादुर ने मुस्कराते हुए कहा, ‘देखो, यह कोई राज नहीं है। तुम बड़े सही मौके पर आए हो। आज ही मुझे एक खतरनाक शेर को पालतू बनाना है। वह कई लोगों को अपना शिकार बना चुका है। तुम मेरे साथ चलना और वहां खुद देखना कि मैं कैसे यह काम करता हूं।’
नौजवान ने देखा कि वीर बहादुर ने अपने साथ न कोई हथियार लिया और न ही बचाव के लिए कोई दूसरी चीज। उसने अपने साथ बस एक लकड़ी का स्टूल लिया है। वह हैरान था कि स्टूल से वीर बहादुर खतरनाक शेर को कैसे काबू कर लेगा। शेर जैसे ही वीर बहादुर की तरफ गरज कर लपकता, वह स्टूल के पायों को शेर की तरफ कर देता।
शेर स्टूल के चारों पायों पर अपना ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करता और असहाय हो जाता। ध्यान बंटने के कारण कुछ ही देर बाद शेर वीर बहादुर का पालतू बन गया। इसके बाद वीर बहादुर ने नौजवान से कहा, ‘अक्सर ऐसा होता है कि एकाग्र व्यक्ति साधारण होने पर भी सफल हो जाता है, लेकिन असाधारण व्यक्ति भी ध्यान बंटने के कारण शेर की तरह पराजित हो जाता है।’
नौजवान ने तभी तय कर लिया कि वह जीवन में हर काम एकाग्र होकर करेगा..!!

लालच -आज की प्रेरक कहानी

किसी गाँव में एक धनी सेठ रहता था उसके बंगले के पास एक जूते सिलने वाले गरीब मोची की छोटी सी दुकान थी। उस मोची की एक खास आदत थी कि जो जब भी जूते सिलता तो भगवान के भजन गुनगुनाता रहता था लेकिन सेठ ने कभी उसके भजनों की तरफ ध्यान नहीं दिया ।
एक दिन सेठ व्यापार के सिलसिले में विदेश गया और घर लौटते वक्त उसकी तबियत बहुत ख़राब हो गयी । लेकिन पैसे की कोई कमी तो थी नहीं सो देश विदेशों से डॉक्टर, वैद्य, हकीमों को बुलाया गया लेकिन कोई भी सेठ की बीमारी का इलाज नहीं कर सका । अब सेठ की तबियत दिन प्रतिदिन ख़राब होती जा रही थी। वह चल फिर भी नहीं पाता था ।
एक दिन वह घर में अपने बिस्तर पे लेटा था अचानक उसके कान में मोची के भजन गाने की आवाज सुनाई दी, आज मोची के भजन कुछ अच्छे लग लग रहे थे सेठ को, कुछ ही देर में सेठ इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसे ऐसा लगा जैसे वो साक्षात परमात्मा से मिलन कर रहा हो। मोची के भजन सेठ को उसकी बीमारी से दूर लेते जा रहे थे कुछ देर के लिए सेठ भूल गया कि वह बीमार है उसे अपार आनंद की प्राप्ति हुई ।
कुछ दिन तक यही सिलसिला चलता रहा, अब धीरे धीरे सेठ के स्वास्थ्य में सुधार आने लगा। एक दिन उसने मोची को बुलाया और कहा – मेरी बीमारी का इलाज बड़े बड़े डॉक्टर नहीं कर पाये लेकिन तुम्हारे भजन ने मेरा स्वास्थ्य सुधार दिया ये लो 1000 रुपये इनाम, मोची खुश होते हुए पैसे लेकर चला गया ।
लेकिन उस रात मोची को बिल्कुल नींद नहीं आई वो सारी रात यही सोचता रहा कि इतने सारे पैसों को कहाँ छुपा कर रखूं और इनसे क्या क्या खरीदना है? इसी सोच की वजह से वो इतना परेशान हुआ कि अगले दिन काम पे भी नहीं जा पाया। अब भजन गाना तो जैसे वो भूल ही गया था, मन में खुशी थी पैसे की।
अब तो उसने काम पर जाना ही बंद कर दिया और धीरे धीरे उसकी दुकानदारी भी चौपट होने लगी । इधर सेठ की बीमारी फिर से बढ़ती जा रही थी ।
एक दिन मोची सेठ के बंगले में आया और बोला सेठ जी आप अपने ये पैसे वापस रख लीजिये, इस धन की वजह से मेरा धंधा चौपट हो गया, मैं भजन गाना ही भूल गया। इस धन ने तो मेरा परमात्मा से नाता ही तुड़वा दिया। मोची पैसे वापस करके फिर से अपने काम में लग गया । ओर कुछ ही समय में फिर से अपने भजनों ओर दैनिक कार्यो में व्यस्त हो गया ।
शिक्षा:-
मित्रों ये एक कहानी मात्र नहीं है ये एक सीख है कि किस तरह पैसों का लालच हमको अपनी उन शक्तियों से दूर ले जाता है जिसने हमारे जीवन को खुश और सफल बना रखा होता है ।
हाँ, अगर आप अपने पास आये धन को अपने दिमाग में न घुसने दे, उसे किसी सद्कर्म में लगा सके या कहीं इन्वेस्ट कर दे पर अपने दिमाग पर हावी न होने दे। तो फिर आपकी जीवन की गति सुचारू रूप से चलती रहेगी। ओर आप अपने जीवन को एक सही दिशा दे सकेंगे। 
भगवान सभी को सद्बुद्धि दे।

भाग्य और पुरुषार्थ – सफलता पर प्रेरक प्रसंग

एक बार दो राज्यों के बीच युद्ध की तैयारियां चल रही थीं। दोनों राज्यों के शासक एक प्रसिद्ध संत के भक्त थे। वे अपनी-अपनी विजय का आशीर्वाद मांगने के लिए अलग-अलग समय पर उनके पास पहुंचे।
पहले शासक को आशीर्वाद देते हुए संत बोले, ‘तुम्हारी विजय निश्चित है।’
दूसरे शासक को उन्होंने कहा, ‘तुम्हारी विजय संदिग्ध है।’
दूसरा शासक संत की यह बात सुनकर चला आया किंतु उसने हार नहीं मानी और अपने सेनापति से कहा, ‘हमें मेहनत और पुरुषार्थ पर विश्वास करना चाहिए। इसलिए हमें जोर-शोर से तैयारी करनी होगी। दिन-रात एक कर युद्ध की बारीकियां सीखनी होंगी। अपनी जान तक को झोंकने के लिए तैयार रहना होगा।’
इधर पहले शासक की प्रसन्नता का ठिकाना न था। उसने अपनी विजय निश्चित जान अपना सारा ध्यान आमोद-प्रमोद व नृत्य-संगीत में लगा दिया। उसके सैनिक भी रंगरेलियां मनाने में लग गए।
निश्चित दिन युद्ध आरंभ हो गया। जिस शासक को विजय का आशीर्वाद था, उसे कोई चिंता ही न थी। उसके सैनिकों ने भी युद्ध का अभ्यास नहीं किया था। दूसरी ओर जिस शासक की विजय संदिग्ध बताई गई थी, उसने व उसके सैनिकों ने दिन-रात एक कर युद्ध की अनेक बारीकियां जान ली थीं। उन्होंने युद्ध में इन्हीं बारीकियों का प्रयोग किया और कुछ ही देर बाद पहले शासक की सेना को परास्त कर दिया।
अपनी हार पर पहला शासक बौखला गया और संत के पास जाकर बोला, ‘महाराज, आपकी वाणी में कोई दम नहीं है। आप गलत भविष्यवाणी करते हैं।’
उसकी बात सुनकर संत मुस्कराते हुए बोले, ‘पुत्र, इतना बौखलाने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हारी विजय निश्चित थी किंतु उसके लिए मेहनत और पुरुषार्थ भी तो जरूरी था। भाग्य भी हमेशा कर्मरत और पुरुषार्थी मनुष्यों का साथ देता है और उसने दिया भी है तभी तो वह शासक जीत गया जिसकी पराजय निश्चित थी।’
संत की बात सुनकर पराजित शासक लज्जित हो गया और संत से क्षमा मांगकर वापस चला आया।
शिक्षा:-
सच है कि भाग्य भी पुरुषार्थी का साथ देता है ।

BE ACTIVE ALWAYS – Short Prerak Prasang

गिद्धों का एक झुण्ड खाने की तलाश में भटक रहा था। उड़ते – उड़ते वे एक टापू पे पहुँच गए। वो जगह उनके लिए स्वर्ग के समान थी। हर तरफ खाने के लिए मेंढक, मछलियाँ और समुद्री जीव मौजूद थे
और इससे भी बड़ी बात ये थी कि वहां इन गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था और वे बिना किसी भय के वहां रह सकते थे।
युवा गिद्ध कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे, उनमे से एक बोला, ” वाह ! मजा आ गया, अब तो मैं यहाँ से कहीं नहीं जाने वाला, यहाँ तो बिना किसी मेहनत के ही हमें बैठे -बैठे खाने को मिल रहा है! बाकी गिद्ध भी उसकी हाँ में हाँ मिला ख़ुशी से झूमने लगे।
सबके दिन मौज -मस्ती में बीत रहे थे लेकिन झुण्ड का सबसे बूढ़ा गिद्ध इससे खुश नहीं था। एक दिन अपनी चिंता जाहिर करते हुए वो बोला, ” भाइयों, हम गिद्ध हैं, हमें हमारी ऊँची उड़ान और अचूक वार करने की ताकत के लिए
जाना जाता है। पर जबसे हम यहाँ आये हैं हर कोई आराम तलब हो गया है।
ऊँची उड़ान तो दूर ज्यादातर गिद्ध तो कई महीनो से उड़े तक नहीं है और आसानी से मिलने वाले भोजन की वजह से अब हम सब शिकार करना भी भूल रहे हैं।
ये हमारे भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।
मैंने फैसला किया है कि मैं इस टापू को छोड़ वापस उन पुराने जंगलो में लौट जाऊँगा। अगर मेरे साथ कोई चलना चाहे तो चल सकता है। बूढ़े गिद्ध की बात सुन बाकि गिद्ध हंसने लगे।
किसी ने उसे पागल कहा तो कोई उसे मूर्ख की उपाधि देने लगा। बेचारा बूढ़ा गिद्ध अकेले ही वापस लौट गया।
समय बीता, कुछ वर्षों बाद बूढ़े गिद्ध ने सोचा ना जाने मैं अब कितने दिन जीवित रहूँ, क्यों न एक बार चल कर अपने पुराने साथियों से मिल लिया जाए।
लम्बी यात्रा के बाद जब वो टापू पे पहुंचा तो वहां का दृश्य भयावह था। ज्यादातर गिद्ध मारे जा चुके थे और जो बचे थे वे बुरी तरह घायल थे। “ये कैसे हो गया ?”, बूढ़े गिद्ध ने पूछा। कराहते हुए एक घायल गिद्ध बोला, “हमे क्षमा कीजियेगा, हमने आपकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया और आपका मजाक तक उड़ाया।
दरअसल, आपके जाने के कुछ महीनो बाद एक बड़ी सी जहाज इस टापू पे आई और चीतों का एक दल यहाँ छोड़ गयी। चीतों ने पहले तो हम पर हमला नहीं किया, पर जैसे ही उन्हें पता चला कि हम सब न ऊँचा उड़ सकते हैं और न अपने पंजो से हमला कर सकते हैं।
उन्होंने हमे खाना शुरू कर दिया। अब हमारी आबादी खत्म होने की कगार पर है बस हम जैसे कुछ घायल गिद्ध ही ज़िंदा बचे हैं। बूढ़ा गिद्ध उन्हें देखकर बस अफ़सोस कर सकता था, वो वापस जंगलों की तरफ उड़ चला।
दोस्तों, अगर हम अपनी किसी शक्ति का Use नहीं करते तो धीरे-धीरे हम उसे Lose कर देते हैं। For instance, अगर हम अपने Brain का Use नहीं करते तो उसकी Sharpness घटती जाती है, अगर हम अपनी Muscles का Use नही करते तो उनकी ताकत घट जाती है इसी तरह अगर हम अपनी Skills को polish नहीं करते तो हमारी काम करने की Efficiency कम होती जाती है।
तेजी से बदलती इस दुनिया में हमें खुद को बदलाव के लिए तैयार रखना चाहिए। पर बहुत बार हम अपनी Current Job या Business में इतने Comfortable हो जाते हैं कि बदलाव के बारे में सोचते ही नहीं और अपने अन्दर कोई नयी Skills Add नहीं करते, अपनी Knowledge बढ़ाने के लिए कोई किताब नहीं पढ़ते कोई Training Program नहीं Attend करते,
यहाँ तक की हम उन चीजों में भी Dull हो जाते हैं जिनकी वजह से कभी हमे जाना जाता था और फिर जब MarketConditions Change होती हैं और हमारी नौकरी या बिज़नेस पे आंच आती है तो हम हालात को दोष देने लगते हैं।
ऐसा मत करिये अपनी काबिलियत अपनी ताकत को जिंदा रखिये अपने कौशल, अपने हुनर को और तराशिये उसपे धूल मत जमने दीजिये और जब आप ऐसा करेंगे तो बड़ी से बड़ी मुसीबत आने पर भी आप ऊँची उड़ान भर पायेंगे।
BE ACTIVE ALWAYS.

एकाग्रता का महत्त्व – हिंदी प्रेरक प्रसंग

वीर बहादुर एक सर्कस में काम करता था। वह खतरनाक शेर को भी कुछ ही समय में पालतू बना लेता था। एक दिन सर्कस में एक नौजवान आया। वह जानवरों के हाव-भाव और हरकतों पर रिसर्च कर रहा था।
उसने वीर बहादुर से कहा, ‘आपका बहुत नाम सुना है। खतरनाक शेर को भी पालतू कैसे बना लेते हैं आप?’ वीर बहादुर ने मुस्कराते हुए कहा, ‘देखो, यह कोई राज नहीं है। तुम बड़े सही मौके पर आए हो। आज ही मुझे एक खतरनाक शेर को पालतू बनाना है। वह कई लोगों को अपना शिकार बना चुका है। तुम मेरे साथ चलना और वहां खुद देखना कि मैं कैसे यह काम करता हूं।’
नौजवान ने देखा कि वीर बहादुर ने अपने साथ न कोई हथियार लिया और न ही बचाव के लिए कोई दूसरी चीज। उसने अपने साथ बस एक लकड़ी का स्टूल लिया है। वह हैरान था कि स्टूल से वीर बहादुर खतरनाक शेर को कैसे काबू कर लेगा। शेर जैसे ही वीर बहादुर की तरफ गरज कर लपकता, वह स्टूल के पायों को शेर की तरफ कर देता।
शेर स्टूल के चारों पायों पर अपना ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करता और असहाय हो जाता। ध्यान बंटने के कारण कुछ ही देर बाद शेर वीर बहादुर का पालतू बन गया। इसके बाद वीर बहादुर ने नौजवान से कहा, ‘अक्सर ऐसा होता है कि एकाग्र व्यक्ति साधारण होने पर भी सफल हो जाता है, लेकिन असाधारण व्यक्ति भी ध्यान बंटने के कारण शेर की तरह पराजित हो जाता है।’
नौजवान ने तभी तय कर लिया कि वह जीवन में हर काम एकाग्र होकर करेगा..!!

संवेदनशीलता – प्रेरक प्रसंग हिन्दी

मोहन काका डाक विभाग के कर्मचारी थे . बरसों से वे माधोपुर और आस पास के गाँव में चिट्ठियां बांटने का काम करते थे। एक दिन उन्हें एक चिट्ठी मिली , पता माधोपुर के करीब का ही था लेकिन आज से पहले उन्होंने उस पते पर कोई चिट्ठी नहीं पहुंचाई थी।
रोज की तरह आज भी उन्होंने अपना थैला उठाया और चिट्ठियां बांटने निकल पड़े . सारी चिट्ठियां बांटने के बाद वे उस नए पते की ओर बढ़ने लगे . दरवाजे पर पहुँच कर उन्होंने आवाज़ दी, “पोस्टमैन !”
अन्दर से किसी लड़की की आवाज़ आई , “काका ! वहीं दरवाजे के नीचे से चिट्ठी डाल दीजिये।”
“अजीब लड़की है मैं इतनी दूर से चिट्ठी लेकर आ सकता हूँ और ये महारानी दरवाजे तक भी नहीं निकल सकतीं !” काका ने मन ही मन सोचा,
“बाहर आइये ! रजिस्ट्री आई है , हस्ताक्षर करने पर ही मिलेगी !”, काका खीजते हुए बोले।
“अभी आई “, अन्दर से आवाज़ आई ”
काका इंतज़ार करने लगे, पर जब 2 मिनट बाद भी कोई नहीं आयी तो उनके सब्र का बाँध टूटने लगा।
“यही काम नहीं है मेरे पास, जल्दी करिए और भी चिट्ठियां पहुंचानी है”, और ऐसा कहकर काका दरवाज़ा पीटने लगे। कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला , सामने का दृश्य देख कर काका चौंक गए ! !!
एक 12-13 साल की लड़की थी जिसके दोनों पैर कटे हुए थे . उन्हें अपनी अधीरता पर शर्मिंदगी हो रही थी , लड़की बोली , क्षमा कीजियेगा मैंने आने में देर लगा दी, बताइए हस्ताक्षर कहाँ करने हैं ? काका ने हस्ताक्षर कराये और वहां से चले गए ।
इस घटना के आठ-दस दिन बाद काका को फिर उसी पते की चिट्ठी मिली . इस बार भी सब जगह चिट्ठियां पहुँचाने के बाद वे उस घर के सामने पहुंचे !
चिट्ठी आई है, हस्ताक्षर की भी ज़रूरत नहीं है . नीचे से डाल दूँ , काका बोले – नहीं-नहीं, रुकिए मैं अभी आई।”, लड़की भीतर से चिल्लाई ।
कुछ देर बाद दरवाजा खुला , लड़की के हाथ में गिफ्ट पैकिंग किया हुआ एक डिब्बा था, काका लाइए मेरी चिट्ठी और लीजिये अपना तोहफ़ा !लड़की मुस्कुराते हुए बोली ।
“इसकी क्या ज़रूरत है बेटा”, काका संकोचवश उपहार लेते हुए बोले , लड़की बोली , “बस ऐसे ही काका.आप इसे ले जाइए और घर जा कर ही खोलियेगा !”
काका डिब्बा लेकर घर की और बढ़ चले , उन्हें समझ नहीं आर रहा था कि डिब्बे में क्या होगा ! घर पहुँचते ही उन्होंने डिब्बा खोला, और तोहफ़ा देखते ही उनकी आँखों से आंसू टपकने लगे ।
डिब्बे में एक जोड़ी चप्पलें थीं . काका बरसों से नंगे पाँव ही चिट्ठियां बांटा करते थे लेकिन आज तक किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था। ये उनके जीवन का सबसे कीमती तोहफ़ा था . काका चप्पलें कलेजे से लगा कर रोने लगे ! उनके मन में बार-बार एक ही विचार आ रहा था- बच्ची ने उन्हें चप्पलें तो दे दीं पर वे उसे पैर कहाँ से लाकर देंगे ?
दोस्तों ! संवेदनशीलता या sensitivity एक बहुत बड़ा मानवीय गुण है . दूसरों के दुखों को महसूस करना और उसे कम करने का प्रयास करना एक महान काम है , जिस बच्ची के खुद के पैर न हों उसकी दूसरों के पैरों के प्रति संवेदनशीलता हमें एक बहुत बड़ा सन्देश देती है ।
आइये हम भी अपने समाज अपने आस-पड़ोस , अपने यार मित्रों , अजनबियों सभी के प्रति संवेदनशील बनें ।
आइये , हम भी किसी के नंगे पाँव की चप्पलें बनें , और दुःख से भरी इस दुनिया में कुछ खुशियाँ फैलाएं !

ज़िन्दगी के पत्थर, कंकड़ और रेत – जिन्दगी प्रेरक प्रसंग कहानी

Philosophy के एक professor ने कुछ चीजों के साथ class में प्रवेश किया. जब class शुरू हुई तो उन्होंने एक बड़ा सा खाली शीशे का जार लिया और उसमे पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े भरने लगे. फिर उन्होंने students से पूछा कि क्या जार भर गया है ? और सभी ने कहा “हाँ” । तब प्रोफ़ेसर ने छोटे-छोटे कंकडों से भरा एक box लिया और उन्हें जार में भरने लगे. जार को थोडा हिलाने पर ये कंकड़ पत्थरों के बीच settle हो गए. एक बार फिर उन्होंने छात्रों से पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने हाँ में उत्तर दिया। तभी professor ने एक sand box निकाला और उसमे भरी रेत को जार में डालने लगे. रेत ने बची-खुची जगह भी भर दी. और एक बार फिर उन्होंने पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने एक साथ उत्तर दिया , ” हाँ” फिर professor ने समझाना शुरू किया, ” मैं चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें कि ये जार आपकी life को represent करता है. बड़े-बड़े पत्थर आपके जीवन की ज़रूरी चीजें हैं- आपकी family,आपका partner,आपकी health, आपके बच्चे – ऐसी चीजें कि अगर आपकी बाकी सारी चीजें खो भी जाएँ और सिर्फ ये रहे तो भी आपकी ज़िन्दगी पूर्ण रहेगी। ये कंकड़ कुछ अन्य चीजें हैं जो matter करती हैं- जैसे कि आपकी job, आपका घर, इत्यादि और ये रेत बाकी सभी छोटी-मोटी चीजों को दर्शाती है। अगर आप जार को पहले रेत से भर देंगे तो कंकडों और पत्थरों के लिए कोई जगह नहीं बचेगी. यही आपकी life के साथ होता है. अगर आप अपनी सारा समय और उर्जा छोटी-छोटी चीजों में लगा देंगे तो आपके पास कभी उन चीजों के लिए time नहीं होगा जो आपके लिए important हैं. उन चीजों पर ध्यान दीजिये जो आपकी happiness के लिए ज़रूरी हैं.बच्चों के साथ खेलिए, अपने partner के साथ dance कीजिये. काम पर जाने के लिए, घर साफ़ करने के लिए,party देने के लिए, हमेशा वक़्त होगा. पर पहले पत्थरों पर ध्यान दीजिये – ऐसी चीजें जो सचमुच matter करती हैं . अपनी priorities set कीजिये. बाकी चीजें बस रेत हैं ।”

संघर्ष का महत्व – सफलता प्रेरक प्रसंग

एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया। कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये। हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाये। एक दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा – देखिये प्रभु,आप परमात्मा हैं, लेकिन लगता है आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है, एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये, जैसा मैं चाहूँ वैसा मौसम हो, फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा। परमात्मा मुस्कुराये और कहा – ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा। अब, किसान ने गेहूं की फ़सल बोई, जब धूप चाही, तब धूप मिली, जब पानी चाही तब पानी। तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी, क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी। किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को की फसल कैसे करते हैं, बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे। फ़सल काटने का समय भी आया, किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था, सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी, बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा – प्रभु ये क्या हुआ ? 

तब परमात्मा बोले – ”ये तो होना ही था , तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया। ना तेज धूप में उनको तपने दिया, ना आंधी ओलों से जूझने दिया, उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया, इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए। जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पौधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वो ही उसे शक्ति देता है, उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है। सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने, हथौड़ी से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है। ”
प्रेरक प्रसंग सीख :-
इसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो, चुनौती ना हो तो आदमी खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता। ये चुनौतियां ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं, उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनौतियां तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे। अगर जिंदगी में प्रखर बनना है, प्रतिभाशाली बनना है, तो संघर्ष और चुनौतियों का सामना तो करना ही पड़ेगा।

अपने लक्ष्य पर ध्यान – छोटा प्रेरक प्रसंग

एक बार की बात है। एक तालाब में कई सारे मेढ़क रहते थे। उन मेढ़को में एक राजा मेंढक था। एक दिन सारे मेढक ने कहा, क्यों न कोई प्रतियोगिता खेली जाए। तालाब में एक पेड़ था। राजा मेंढक ने कहाकि “जो भी इस पेड़ पर चढ़ जाएगा, वह विजई कहलाएगा।
सारे मेढ़क द्वारा यह प्रतियोगिता स्वीकार कर ली गई और अगले दिन उस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। सभी मेंढक तैयार थे। इस प्रतियोगिता मैं भाग लेने के लिए सारे मेंढक जैसे ही प्रतियोगिता शुरू हुई एक एक करके उस पेड़ पर चढ़ने लगे। कुछ मेढ़क ऊपर चढ़ते गए और फिर फिसलते गए। फिर नीचे गिर जाते थे।
ऐसे ही कई मेंढक ऊपर चढ़ते रहे और फ़िसलते रहे और फिर नीचे गिर जाते। इसी बीच कुछ मेढ़क ने हार मान कर बंद कर चढ़ना बन्द कर दिया। परंतु कुछ मेढ़क चढ़ते रहे, जो मेढ़क नहीं चढ़ पाए थे और छोड़ दिया था। वह कह रहे थे कि “इस पर कोई चढ़े ही नहीं पाएगा। यह असंभव है, असंभव है ।” इस पर कोई नहीं कर सकता। जो मेंढक दोबारा चढ़ रहे थे, उन्होंने भी हार मान ली। परंतु उनमें से एक मेंढक लगातार प्रयास करता रहा। लगातार प्रयास करने के कारण अंत में वह पेड़ पर चढ़ गया और सभी मित्रों द्वारा तालियां बजाई गई और सबने उससे चढ़ने का कारण पूछा उनमें से एक पीछे से एक ने कहा यह तो बहरा है, इसे कुछ सुनाई नहीं देता। उस बहरे मेंढक के एक दोस्त ने उससे पूछा तुमने यह कैसे कर लिया। उसने कहा मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। मुझे लग रहा था कि नीचे खड़े यह लोग मुझे प्रोत्साहित कर रहे हैं कि तुम कर सकते हो। अब तुम ही हो तुम कर सकते हो और मैं आखिरकार इस पेड़ पर चढ़ गया । सब ने उसकी खूब तारीफ की और उसे पुरस्कृत किया गया।
शिक्षा- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सिर्फ अपने लक्ष्य पर केंद्रित होना चाहिए दुनिया क्या कहती है, उस पर ध्यान बिल्कुल नहीं देना चाहिए।

हमेशा सीखते रहो – प्रेरक प्रसंग कहानी

एक बार गाँव के दो व्यक्तियों ने शहर जाकर पैसे कमाने का निर्णय लिया शहर जाकर कुछ महीने इधर-उधर छोटा-मोटा काम कर दोनों ने कुछ पैसे जमा किये फिर उन पैसों से अपना-अपना व्यवसाय प्रारंभ किया दोनों का व्यवसाय चल पड़ा दो साल में ही दोनों ने अच्छी ख़ासी तरक्की कर ली. व्यवसाय को फलता-फूलता देख पहले व्यक्ति ने सोचा कि अब तो मेरे काम चल पड़ा है अब तो मैं तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाऊंगा लेकिन उसकी सोच के विपरीत व्यापारिक उतार-चढ़ाव के कारण उसे उस साल अत्यधिक घाटा हुआ।
अब तक आसमान में उड़ रहा वह व्यक्ति यथार्थ के धरातल पर आ गिरा वह उन कारणों को तलाशने लगा, जिनकी वजह से उसका व्यापार बाज़ार की मार नहीं सह पाया सबने पहले उसने उस दूसरे व्यक्ति के व्यवसाय की स्थिति का पता लगाया, जिसने उसके साथ ही व्यापार आरंभ किया था वह यह जानकर हैरान रह गया कि इस उतार-चढ़ाव और मंदी के दौर में भी उसका व्यवसाय मुनाफ़े में है उसने तुरंत उसके पास जाकर इसका कारण जानने का निर्णय लिया. अगले ही दिन वह दूसरे व्यक्ति के पास पहुँचा।
दूसरे व्यक्ति ने उसका खूब आदर-सत्कार किया और उसके आने का कारण पूछा। तब पहला व्यक्ति बोला, “दोस्त! इस वर्ष मेरा व्यवसाय बाज़ार की मार नहीं झेल पाया. बहुत घाटा झेलना पड़ा. तुम भी तो इसी व्यवसाय में हो. तुमने ऐसा क्या किया कि इस उतार-चढ़ाव के दौर में भी तुमने मुनाफ़ा कमाया?” यह बात सुन दूसरा व्यक्ति बोला, “भाई! मैं तो बस सीखता जा रहा हूँ, अपनी गलती से भी और साथ ही दूसरों की गलतियों से भी. जो समस्या सामने आती है, उसमें से भी सीख लेता हूँ. इसलिए जब दोबारा वैसी समस्या सामने आती है. तो उसका सामना अच्छे से कर पाता हूँ और उसके कारण मुझे नुकसान नहीं उठाना पड़ता. बस ये सीखने की प्रवृत्ति ही है, जो मुझे जीवन में आगे बढ़ाती जा रही है” दूसरे व्यक्ति की बात सुनकर पहले व्यक्ति को अपनी भूल का अहसास हुआ। सफ़लता के मद में वो अति-आत्मविश्वास से भर उठा था और सीखना छोड़ दिया था. वह यह प्रण कर वापस लौटा कि कभी सीखना नहीं छोड़ेगा उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया।

शिक्षा:-
प्रिय आत्मीय जनों, जीवन में कामयाब होना है, तो इसे पाठशाला मान हर पल सीखते रहिये. यहाँ नित नए परिवर्तन और नए विकास होते रहते हैं. यदि हम स्वयं को सर्वज्ञाता समझने की भूल करेंगे, तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जायेंगे. क्योंकि इस दौड़ में जीतता वही है, जो लगातार दौड़ता रहता है. जिसने दौड़ना छोड़ दिया, उसकी हार निश्चित है. इसलिए सीखने की ललक खुद में बनाये रखें, फिर कोई बदलाव, कोई उतार-चढ़ाव आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता।

गुरु – शिष्य और तितली – बच्चों के लिए प्रेरक प्रसंग

एक समय एक गुरु और शिष्य बगीचे में बैठे हुए अपने ध्यान चिंतन में मग्न थे, ध्यान चिंतन करते-करते शिष्य देखता है, की एक पौधे के नीचे पत्तों व घांस में एक अण्डा पड़ा हुआ है। और उस उस अंडे के अंदर जो भी जीव, प्राणी है वह अंडे को तोड़ कर बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है और यह प्रयास लगातार चलता रहा, सुबह से दोपहर हो गया फीर दोपहर से शाम हो गया, लेकिन वह प्राणी अंडे से बाहार नहीं निकल पाया था। हालांकि उसके लगातार प्रयास से अण्डा जगह-जगह से टूट गया था और इल्ली (तितली) का थोड़ा सा मुँह बाहर निकल गया। इसी तरह यह कोशिश लगातार दिन रात चलती रही और कई दिन बीत गए, परन्तु इल्ली अभी भी अंडे से बाहर नहीं निकल पायी थी। शिष्य उसे ध्यान से देखता रहता था, शिष्य को इल्ली पर बड़ी दया आ रही थी, की वह प्राणी दिन-रात मेहनत कर रहा है और अण्डा से बाहर आना चाह रहा है परन्तु अण्डा तो थोड़ा-थोड़ा करके ही टूट रहा है। शिष्य को लगा की इस इल्ली के लिए कुछ करना चाहिए। परन्तु गुरजी शिष्य को बोलते की तुम इधर-उधर अपना ध्यान मत भटकाओ और केवल ध्यान में अपना मन लगाओ। अंत में शिष्य से रहा नहीं गया और उसने अण्डे के खोल को तोड़कर इल्ली बाहर निकाल ली, शिष्य इल्ली को अपने हाँथ में लेकर उसे देखने, निहारने लगा। वह बहुत ही प्रसन्न हुआ की मैने इस इल्ली पर दया दिखाते हुए इसकी जान बचा ली, परन्तु वह इल्ली मुश्किल से 2, 3 घंटे तक जीवित रही फिर मर गयी। शिष्य को बहुत दुःख हुआ वह समझ नहीं पाया की आखिर ऐसा क्यों हुआ। उसने गुरूजी से पूछा की गुरूजी ऐसा क्यों हो गया। गुरूजी बोले – तुमने इस अण्डे को जीवन देने के बजाय इसकी जीवन ले ली। तुमने उस इल्ली की पीड़ा देखी जबकि वास्तव में वह पीड़ा थी ही नहीं, इल्ली बार-बार अपने पंख से अण्डे पर प्रहार किये जा रही थी। जिससे उसके पंखो पर मजबूती आ रही थी और कुछ दिन बाद उसके पैर मजबूत हो भी जाते, वह खुद से उस अण्डे को तोड़ पाती, फीर वह स्वतंत्र होकर घूमती फिरती फूलों का आनंद लेती। दोस्तों इस छोटी सी कहानी का सार यह है की हम अपने बच्चों को या किसी अपने को या फिर खुद को तकलीफ देना ही नहीं चाहते हम चाहते है की उन्हें बिना तकलीफ किये ही सारा सुख मिले। प्रयाश करना, हार जाना, फिर प्रयास करना, और प्रयाश करते रहना। हम ये नहीं चाहते, हम यह चाहते है की हमे बिना प्रयास किये सफलता मिले, हमे जीवन में कोई कष्ट उठाना ना पड़े। दुःख तकलीफ होने पर रोते तो सभी हैं, पर बहुत कम ही ऐसे लोग होते हैं जो संघर्ष करते हैं। अधिकतर लोग अपने जीवन से समझौता किये हुए होते है और डर-डर कर अपना जीवन गुजार देते हैं। याद रखिये परिस्थितियों को बदलने का नाम ही संघर्ष है।

Motivational stories in Hindi

इस पोस्ट में हमने कुछ मोटिवेशनल प्रेरक प्रसंग कहानियां साँझा की है जो पाठको के जीवन में सफलता के लिए प्रेरित करेगी , सफलता पर आधारित ये प्रेरक प्रसंग कहानियाँ विद्यार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी है क्योकि सक्सेस स्टोरीज हमारे इरादों में जान फुकती है इस साइट पर और भी बहुत सारी प्रेरक प्रसंग कहानियां पोस्ट की गई है।

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