Story OF Legends/Prerak Prasang

आज हम इस पोस्ट में आपको कुछ ऐसे महापुरुषु के बारे में बताएंगे जिनके बारे में आपको सायाद से ही पता होगा। आप अगर इनके पथ पर अनुसरण करते है तो आपको निश्चित ही सफलता मिलेगी।

मेहनत की रोटी/Prerak Prasang

गुरूनानक जी एकदिन एक साधारण बढ़ई लालो की गुरूभक्ति से प्रसन्न होकर उसके यहाँ ठहर गए। इसकी खबर उस इलाके के प्रमुख मलिक भागो के कानों तक पहुँची। तब समाज में ऊँच-नीच की भावना व्याप्त थी।

भागो यह कैसे सहन करे कि एक संत एक बढ़ई के घर में निवास करें। उन्होंने तुरन्त अपने यहाँ भोजन करने के लिए आमन्त्रित किया। उस समय गुरू जी भजन गा रहे थे और उनका शिष्य मर्दाना रवाब बजा रहा था।

उन्होंने मलिक भागो से कहा, ‘मैं आपके यहाँ भोजन ग्रहण नहीं करूँगा।’ भागो अपमान से जलने लगा। पूछा, ‘आखिर क्यों? क्या मैं इससे भी नीच हूँ।’गुरू जी ने कहा, ‘ठीक है, अपनी खाद्य सामग्री दे दो।’

गुरू जी ने उसे अपने हाथों में लेकर निचोड़ा। अरे यह क्या? खून निकलने लगा।उन्होंने लालो से अपना भोजन मँगवाया। वही रूखी सूखी रोटी और साग। उसे निचोड़ने लगे- दूध की धारा?

गुरू जी ने कहा अब समझे तेरी कमाई पसीने की नहीं, शोषण की कमाई है। बेचारा मलिक भागो लज्जित हो गया।

ईमानदारी महान गुण है/Prerak Prasang

नाव गंगा के इस पार खड़ी है। यात्रियों से लगभग भर चुकी है। रामनगर के लिए खुलने ही वाली है, बस एक-दो सवारी चाहिए। उसी की बगल में एक नवयुवक खड़ा है। नाविक उसे पहचानता है। बोलता है – ‘आ जाओ, खड़े क्यों हो, क्या रामनगर नहीं जाना है?’ नवयुवक ने कहा, ‘जाना है, लेकिन आज मैं तुम्हारी नाव से नहीं जा सकता।?’

क्यों भैया, रोज तो इसी नाव से आते-जाते हो, आज क्या बात हो गयी? आज मेरे पास उतराई देने के लिए पैसे नहीं हैं। तुम जाओ। अरे! यह भी कोई बात हुई। आज नहीं, तो कल दे देना

। नवयुवक ने सोचा, बड़ी मुश्किल से तो माँ मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाती हैं। कल भी यदि पैसे का प्रबन्ध नहीं हुआ, तो कहाँ से दूँगा? उसने नाविक से कहा, तुम ले जाओ नौका, मैं नहीं जाने वाला। वह अपनी किताब कापियाँ एक हाथ में ऊपर उठा लेता है और छपाक नदी में कूद जाता है। नाविक देखता ही रह गया।

मुख से निकला- अजीब मनमौजी लड़का है।छप-छप करते नवयुवक गंगा नदी पार कर जाता है। रामनगर के तट पर अपनी किताबें रखकर कपड़े निचोड़ता है। भींगे कपड़े पहनकर वह घर पहुँचता है। माँ रामदुलारी इस हालत में अपने बेटे को देखकर चिंतित हो उठी।अरे! तुम्हारे कपड़े तो भीगें हैं?

जल्दी उतारो।नवयुवक ने सारी बात बतलाते हुए कहा, तुम्ही बोलो माँ, अपनी मजबूरी मल्लाह को क्यों बतलाता? फिर वह बेचारा तो खुद गरीब आदमी है। उसकी नाव पर बिना उतराई दिए बैठना कहाँ तक उचित था? यही सोचकर मैं नाव पर नहीं चढ़ा। गंगा पार करके आया हूँ।

माँ रामदुलारी ने अपने पुत्र को सीने से लगाते हुए कहा, ‘बेटा, तू जरूर एक दिन बड़ा आदमी बनेगा।’ वह नवयुवक अन्य कोई नहीं लाल बहादुर शास्त्री थे, जो देश के प्रधानमंत्री बने और 18 महीनों में ही राष्ट्र को प्रगति की राह दिखायी।

सत्य और संकल्प पर अटल रहें/Prerak Prasang

यह एक पोलियोग्रस्त बालिका की कहानी है। चार साल की उम्र में निमोनिया और काला ज्वर की शिकार हो गयी। फलतः पैरों में लकवा मार गया। डॉक्टरों ने कहा विल्मा रूडोल्फ अब चल न सकेगी।

विल्मा का जन्म टेनेसस के एक दरिद्र परिवार में हुआ था, लेकिन उसकी माँ विचारों की धनी थी। उसने ढाँढस बँधाया, ‘नहीं विल्मा तुम भी चल सकती हो, यदि चाहो तो!’ विल्मा की इच्छा-शक्ति जाग्रत हुई। उसने डॉक्टरों को चुनौती दी, क्योंकि माँ ने कहा था यदि आदमी को ईश्वर में दृढ़ विश्वास के साथ मेहनत और लगन हो, वह दुनियाँ में कुछ भी कर सकता है।

नौ साल की उम्र में वह उठ बैठी। 13 साल की उम्र में पहली बार एक दौड़ प्रतियोगिता में शामिल हुई, लेकिन हार गयी। फिर लगातार तीन प्रतियोगिताओं में हारी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी।

15 साल की उम्र में टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी में गई और वहाँ एड टेम्पल नामक कोच से मिलकर कहा, ‘आप मेरी क्या मदद करेंगे, मैं दुनियाँ की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ।’ कोच टेम्पल ने कहा, ‘तुम्हारी इस इच्छा शक्ति के सामने कोई बाधा टिक नहीं सकती, मैं तुम्हारी मदद करूँगा

।’1960 की विश्व-प्रतियोगिता ओलम्पिक में वह भाग लेने आयी। उसका मुकाबला विश्व की सबसे तेज धाविका जुत्ता हैन से हुआ। कोई सोच नहीं सकता था कि एक अपंग बालिका वायु वेग से दौड़ सकती है। वह दौड़ी और एक, दो, तीन प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त कर 100 मीटर, 200 मीटर तथा 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता।उसने प्रमाणित कर दिया कि एक अपंग व्यक्ति दृढ़ इच्छा शक्ति से सब कुछ कर सकता है। हर सफलता की राह कठिनाइयों के बीच से गुजरती है।

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